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________________ बरब842U ( १८ ) सप्तभंगी के इस सांकेतिक प्रारूप के निर्माण में हमने चिह्नों का प्रयोग उनके सामने दर्शित अर्थों में किया है :चिह्न अर्थ यदि-तो(हेतुफलाश्रित कथन) अपेक्षा (दृष्टिकोण) संयोजन (और) युगपत् (एकसाथ) अनन्तत्व व्याघातक उद्देश्य विधेय भंगों के आगमिक रूप भंगों के सांकेतिक रूप ठोस उदाहरण स्यात् अस्ति अ उ वि है यदि द्रव्यकी अपेक्षासे विचार करते हैं तो आत्मा नित्य है। स्यात् नास्ति अ- उवि नहीं है यदि पर्याय की अपेक्षा से विचार करते हैं तो आत्मा नित्य नहीं है। (अ', उ वि है. यदि द्रव्य की अपेक्षा से स्यात् अस्ति नास्ति च अ उ वि नहीं है वि , ही विचार करते हैं तो आत्मा नित्य है और यदि पर्याय की अपेक्षा से विचार करते हैं तो आत्मा नित्य नहीं है। ((अ अ2) य उ यदि द्रव्य और पर्याय दोनों स्यात् अवक्तव्य अवक्तव्य है ही अपेक्षा से एक साथ विचार करते हैं तो आत्मा अवक्तव्य है। (क्योंकि दो भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से दो अलग-अलग कथन हो सकते हैं किन्तु एक कथन नहीं हो सकता)। Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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