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________________ ( १६ ) सप्तभंगी सप्तभंगी स्याद्वाद की भाषायी अभिव्यक्ति के सामान्य विकल्पों को प्रस्तुत करती है । हमारी भाषा विधि-निषेध की सीमाओं से घिरी हुई है। "है" और "नहीं है" हमारे कथनों के दो प्रारूप हैं। किन्तु कभीकभी हम अपनी बात को स्पष्टतया "है" (विधि) और "नहीं है" (निषेध) की भाषा में प्रस्तुत करने में असमर्थ होते हैं । अर्थात् सीमित शब्दावली की यह भाषा हमारी अनुभति को प्रगट करने में असमर्थ होती है। ऐसी स्थिति में हम एक तीसरे विकल्प "अवाच्य" या "अवक्तव्य" का सहारा लेते हैं, अर्थात् शब्दों के माध्यम से "है" और "नहीं है" की भाषायो सीमा में बाँध कर उसे कहा नहीं जा सकता है। इस प्रकार विधि, निषेध और अवक्तव्यता से जो सात प्रकार का वचन विन्यास बनता है, उसे सप्तभंगी कहा जाता है।' सप्तभंगी में स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति और स्यात् अवक्तव्य ये तीन असंयोगी मौलिक भंग हैं। शेष चार भंग इन तीनों के संयोग से बनते हैं। उनमें स्यात् अस्ति-नास्ति, स्यात् अस्ति-अवक्तव्य और स्यात् नास्ति-अवक्तव्य ये तीन द्विसंयोगी और अन्तिम स्यात्-अस्ति-नास्ति-अवक्तव्य, यह त्रिसंयोगी भंग है। निर्णयों की भाषायी अभिव्यक्ति विधि, निषेध और अवक्तव्य, इन तीन ही रूप में होती है। अतः उससे तीन ही मौलिक भंग बनते हैं और इन तीन मौलिक भंगों में से गणितशास्त्र के संयोग नियम (Law of Combination) के आधार पर सात भंग ही बनते हैं, न कम न अधिक। अष्टसहस्री टीका में आचार्य विद्यानन्दि ने इसीलिए यह कहा है कि जिज्ञासा और संशय और उनके समाधान सप्त प्रकार के ही हो सकते हैं। अतः जैन आचार्यों की सप्तभंगी की यह व्यवस्था निर्मूल नहीं है। वस्तुतत्त्व के अनन्त धर्मों में से प्रत्येक को लेकर एक-एक सप्तभंगी और इस प्रकार अनन्त सप्तभंगियाँ तो बनाई जा सकती हैं किन्तु अनन्तभंगी नहीं । श्वेताम्बर आगम भगवतीसुत्र में षट्प्रदेशी स्कन्ध के संबंध में जो २३ भंगों की १ (अ) सप्तभिः प्रकारैर्वचनविन्यासः सप्तभंगीतोगीयते । -स्याद्वादमंज़री कारिका २३ की टीका । . (ब) प्रश्नवशात् एकत्र वस्तुनि अविरोधेन विधि प्रतिषेधकल्पना सप्तभंगी। -राजवार्तिक १-६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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