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________________ जेन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय की आधुनिक व्याख्या आत्म विरोध के दोषों से ग्रस्त हो जायेगा, किन्तु ऐसा नहीं है । यदि प्रथम भंग में स्यादस्त्येव घटः का अर्थ किसी अपेक्षा से घड़ा है और द्वितीय भंग में "स्यान्नास्त्येव घटः " का अर्थ किसी अपेक्षा से घड़ा नहीं है ऐसा करेंगे तो आभासी रूप से ऐसा लगेगा कि दोनों कथन विरोधी हैं, क्योंकि इन कथनों के भाषायी स्वरूप से ऐसा आभास होता है कि इन कथनों में घट के अस्तित्व और नास्तित्व को हो सूचित किया गया है। जबकि जैन आचार्यों की दृष्टि में इन कथनों का बल उनमें प्रयुक्त " स्यात् " शब्द में ही है, वे यह नहीं मानते हैं कि द्वितीय भंग प्रथम भंग में स्थापित सत्य का प्रतिषेध करता है । दोनों भंगों में घट के सम्बन्ध में जिनका विधान या निषेध किया गया है वे अपेक्षाश्रित धर्म हैं न कि घट स्वयं का अस्तित्व या नास्तित्व । पुनः, दोनों भंगों के " अपेक्षाश्रित धर्म" एक नहीं हैं, भिन्न-भिन्न हैं । प्रथम भंग में जिन अपेक्षाश्रित धर्मों का विधान है, वे अन्य अर्थात् स्वचतुष्टय के हैं और द्वितीय भंग में जिन अपेक्षाश्रित धर्मों का निषेध हुआ है वे दूसरे अर्थात् पर चतुष्टय के हैं । ' वस्तुतः उनमें कोई विरोध नहीं है । ७० (ब) प्रत्येक वस्तु को सर्वधर्माश्रयी के साथ ही विरुद्ध धर्म युगलाश्रयी सिद्ध करना जैन आचार्यों ने वस्तुओं की अनन्तधर्मता के समर्थन में प्रत्येक वस्तु को सर्व विरुद्ध धर्माश्रयी बताया है । उन्होंने कहा है कि "अनेकान्त स्वभाववाली होने से सब वस्तुएँ अनेकान्तात्मक हैं । जो वस्तु तत् है वही अतत् है जो एक है वही अनेक है, जो सत् है वही असत् है, जो नित्य है वही अनित्य है - इस प्रकार एक वस्तु में वस्तुतत्त्व की परस्पर विरुद्ध दो शक्तियों का प्रकाशित होना अनेकान्त है । किन्तु यहाँ कठिनाई यह है कि प्रत्येक वस्तु में सभी विरोधी धर्मं युगलों को आरोपित करना युक्तिसंगत नहीं प्रतीत होता है; क्योंकि चेतन-अचेतन, भव्यत्व - अभव्यत्व धर्मं भी विरोधी धर्मं युगल हैं और ये विरोधी धर्मं युगल एक साथ एक वस्तु में नहीं रह सकते । जिसमें चेतना का अत्यन्त अभाव है उसमें चेतना का सद्भाव कैसे माना जा सकता है । इसी प्रकार जो चेतन है १. द्रष्टव्य - महावीर जयन्ती स्मारिका १९७७, पृ० १-४६ । २. समयसार, गा० २४७ की टीका । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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