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जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
के उपाय आदि विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया है। 'चुल्लवग्ग' में भी शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इसमें कुल बारह खन्दक हैं जिसमें दसवें खन्दक में विशेष रूप से भिक्षुणी जीवन से सम्बन्धित नियमों का विवरण दिया गया है।
'विनयपिटक' का अन्तिम भाग 'परिवार' है जो प्रश्नोत्तर के रूप में निबद्ध है। इसमें १९ परिच्छेद हैं, जिनमें 'अभिधम्मपिटक' की शैली पर 'विनयपिटक' के विषय की पुनरावृत्ति की गयी है।९४ विंटरनित्ज ने भी कहा है कि जो सम्बन्ध वेद की अनक्रमणी
और परिशिष्ट का वेद से है वही सम्बन्ध ‘परिवार' का 'विनयपिटक' से है।९५ दीर्घनिकाय
दीर्घनिकाय ‘सुत्तपिटक' का पहला उप-विभाग है। दीर्घ आकारों के सुत्तों (सूत्रों) का संग्रह होने के कारण इसे दीर्घनिकाय कहा गया है। इसे 'दीघागम' या 'दीघसङ्गह' भी कहते हैं। आकार की दृष्टि से बुद्ध के जो उपदेश बड़े हैं, वे इस निकाय में संग्रहीत हैं। यह ग्रन्थ तीन भागों में विभक्त है, यथा- (१) सीलक्खन्ध, (२) महावग्ग और (३) पाटिकवग्ग। पं० राहुल सांकृत्यायन ने इस ग्रन्थ का हिन्दी में अनुवाद किया है। इस ग्रन्थ में कुल मिलाकर चौंतीस सुत्त हैं जिनमें सीलक्खन्ध में १-१२ सुत्त, महावग्ग में १३-२३ और पाटिकवग्ग में २४-३४। सीलक्खन्ध की कुछ पंक्तियां गाथाओं में हैं, शेष सभी गद्य में हैं। इसी प्रकार महावग्ग और पाटिकवग्ग में अधिकांश सुत्त गद्य-पद्य मिश्रित हैं।
दीर्घनिकाय के सीलक्खन्धवग्ग के प्रथम सुत्त (ब्रह्मजालसुत्त) में अनेक विद्याओं यथा- वास्तुविद्या, क्षेत्रविद्या, मणि-लक्षण, वस्त्र-लक्षण आदि का वर्णन देखने को मिलता है। नवम सुत्त में आत्मा और लोक के आदि और अन्त सम्बन्धी प्रश्नों को उठाया तथा शील, समाधि और प्रज्ञा की साधना पर बल दिया गया है। मज्झिमनिकाय
'मज्झिमनिकाय' का सभी निकायों में अपना अनुपम स्थान है। इसमें १४वें सुत्त को छोड़कर प्रत्येक भाग में दस-दस सुत्त हैं, १४वें में १२ सुत्त हैं। चूँकि इसमें मध्यम आकार के सुत्तों का संग्रह है इसीलिए इसका नाम 'मज्झिमनिकाय' पड़ा। पं० राहुल सांकृत्यायन ने हिन्दी में अनुवाद कर इस निकाय को 'बुद्धवचनामृत' नाम से विभूषित किया है। यह पन्द्रह अध्यायों में विभक्त है। इस ग्रन्थ के अन्तर्गत १५२ सुत्त संग्रहीत हैं।
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