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________________ ४९ ___जैन एवं बौद्ध धर्म-दर्शन तथा उनके साहित्य की अपनी शक्ति का बखान आदि दोषों पर संघ से निष्कासन का दण्ड दिया जाता था। संघादिशेष अर्थात् संघावशेष शीर्षक के अन्तर्गत जो पापों की सूची दी गयी है उसके अनुसार पाप करनेवाले भिक्षुओं को थोड़े समय के लिए निष्कासित किया जाता था। यदि कम से कम २० भिक्षु उन्हें संघ में फिर से लेने योग्य समझते थे तो उन्हें संघ में ले लिया जाता था।९° इसमें तेरह पापों का उल्लेख किया गया है। 'भिक्खुपातिमोक्ख' के पाँचवें खण्ड में जिसे पाचित्तिय नाम से अभिहित किया गया है, ९२ (बानबे) अपराधों को बताया गया है, यथा- कीटकों की हिंसा करनेवाले अविचारपूर्ण कार्य, बुद्ध के उपदेश और अनुशासन के प्रति अनादर, बुद्ध का अनुशासन न मानना तथा विहार में विस्तर, आसन, चीवर आदि का संग्रह करना आदि। इसके अन्तिम भाग में संघ के अन्दर हुए झगड़े को दूर करने के उपायों पर विचार किया गया है। पटिदेसनीय के चार नियम और सेखिय के ७५ नियमों पर भी विस्तार से विचार किया गया है। भिक्षुणी विभंग में सात प्रकार के अपराधों का वर्णन है जिसमें पारांजिका के प्रथम भाग में भिक्षुपातिमोक्ख में बनाये गये नियमों के अतिरिक्त चार और नियम दिये गये हैं। संघादिसेस में भिक्षणियों के लिए सत्रह दोष बताये गये हैं। पाचित्तिय शीर्षक के अन्तर्गत भिक्षुणियों के लिए एक सौ छियासठ अपराधों का वर्णन है। 'विनयपिटक' का दूसरा भाग खन्धक भी दो भागों में विभक्त है- 'महावग्ग' और 'चुल्लवग्ग'। 'महावग्ग' में इस बात को बताया गया है कि भिक्षु को संघ में किस प्रकार जीवनयापन करना चाहिए। इसमें दस खन्दक हैं। पहले खन्दक में भगवान् बुद्ध के बुद्धत्व प्राप्ति से लेकर वाराणसी में धर्मचक्रप्रवर्तन आदि का वर्णन किया गया है। साथ ही उपाध्याय, आचार्य के कर्तव्य, शिष्य के कर्तव्य को बताते हुए कहा गया है कि शिष्य को उपाध्याय के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। समय से उठकर, जूता छोड़, उत्तरासंग को एक कन्धे पर रख दातून देनी चाहिए, मुख धोने के लिए जल देना चाहिए ......९१ इसी प्रकार उपाध्याय के भी कर्तव्य को प्रकाशित करते हुए कहा गया है- उपाध्याय को शिष्य के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए, यथा- उपाध्याय को शिष्य पर कृपादृष्टि रखनी चाहिए, शिष्य के लिए उपदेश देना चाहिए, पात्र देना चाहिए, आदि।९२ यदि शिष्य बिमार पड़ जाता है तो उपाध्याय को भी उसकी सेवा उसी प्रकार करनी चाहिए जिस प्रकार शिष्य उपाध्याय के प्रति करता है।९३ इसके अतिरिक्त भिक्षु और भिक्षुणी संघों के जीवन एवं कार्य के संचालन-विधि को बहुत ही अच्छी तरह प्रकाशित किया गया है। प्रव्रज्या-विधि, उपसम्पदा-विधि अर्थात् भिक्षु संघ में प्रवेश की विधि, उपसोथ के नियम, वर्षावास के नियम, संघ में फूट पड़ने पर उसमें एकता लाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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