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४६ जैन एवं बौद्ध शिक्षा दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
है कि 'मूलाचार' कुन्दकुन्दाचार्य की कृति है । 'मूलाचार' पर लिखी गई वसुनन्दि रचित 'आचारवृत्ति' नामक टीका से यह तथ्य प्रमाणित होता है । जैसा कि ग्रन्थ के समापन पर उन्होंने लिखा है- ' इति मूलाचारविवृत्तौ द्वादशोध्यायः इति कुन्दकुन्दाचार्यप्रणीतमूलाचाराख्यविवृत्तिः । कृतिरियं वसुनन्दिनः श्री श्रमणस्य।' इसके टीकाकारों में श्री वसुनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्ती आचार्य तथा मेघचन्द्राचार्य का नाम आता है । ७" ७५ प्रस्तुत ग्रन्थ में बारह अधिकार तथा १२५२ गाथाएँ हैं। इसके चौथे अधिकार अर्थात् सामाचाराधिकार में श्रमणों को एकलविहार करने का निषेध, गुरु से अन्य धर्मक्षेत्रों में जाने की आज्ञा माँगना, एकल विहारी कौन हो सकता है ? शिक्षार्थी को किस प्रकार के गुरुकुल में निवास करना चाहिए ? गुरु के लक्षण, शरणागत साधु की आचार्य द्वारा परीक्षा, योग्य तथा अयोग्य शिक्षार्थी का क्रमशः आश्रय तथा परिहार करना, भावशुद्धि और विनयपूर्वक अध्ययन करना आदि विषय सम्मिलित हैं। साथ ही परगण में गुरु, बाल, वृद्धादि मुनियों की वैयावृत्य करनी चाहिए तथा आर्यिकाओं का गणधर कैसा होना चाहिए तथा उनकी चर्यापद्धति कैसी होनी चाहिए इसका निरूपण किया गया है।
भगवती आराधना
इसके रचनाकार आचार्य शिवार्य हैं। 'भगवती आराधना' का यथार्थ नाम आराधना ही है, क्योंकि इसके टीकाकार श्री अपराजित सूरि ने अपनी टीका के अन्त में उसका नाम आराधना टीका ही दिया है । ७६ भगवती तो उसके प्रति आदरभाव व्यक्त करने के लिए प्रयोग किया गया है। इस ग्रन्थ पर अपराजितसूरि ने टीका लिखी जो 'विजयोदया टीका' के नाम से जानी जाती है। दूसरी टीका 'मूलाराधना दर्पण' है, जो प्रसिद्ध ग्रन्थकार पं० आशाधर द्वारा रचित है। इसकी गाथा संख्या में विभिन्नता पायी जाती है। किसी में २१७० है तो किसी में २१६४ । ७७ लेकिन देवेन्द्रमुनि शास्त्री ने अपनी पुस्तक में २१६६ गाथाओं का वर्णन किया है। ७८ भगवती आराधना के आधार पर ही आचार्य देवसेन ने 'आराधनासार' ग्रन्थ की रचना की है । ७९
प्रस्तुत ग्रन्थ में आचार्य के छत्तीस गुणों८० का विस्तृत विवेचन किया गया है। आचारवत्व आदि आठ, दस प्रकार के स्थितिकल्प, बारह तप, छः आवश्यक आदि छत्तीस गुण हैं। साथ ही उत्तराधिकारी आचार्य की नियुक्ति-विधि, नवनियुक्त आचार्य को उद्बोधन आदि विषयों की भी चर्चा की गयी है ।
बौद्ध साहित्य
बौद्ध परम्परा का साहित्य बहुत ही विशाल तथा व्यापक है। बौद्ध साहित्य केवल
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