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१२ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन स्पष्ट है कि शिक्षा और दर्शन दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, दोनों एक-दूसरे पर आधारित हैं। कुछ विद्वानों का कहना है कि दर्शन सूक्ष्म अर्थात् आत्मा-परमात्मा से सम्बन्धित होता है जब कि शिक्षा मूर्त अर्थात् मनुष्यों के व्यवहारों से सम्बन्धित होता है। इसलिए इनमें आपस में कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता, क्योंकि एक सैद्धान्तिक है तो दूसरा व्यावहारिक। इस सन्दर्भ में यह कहा जा सकता है कि दर्शन भी मानव को दृष्टि में रखकर ही बौद्धिक दुनियाँ में घूमता है और शिक्षा भी मानव को एक नया रूप प्रदान करती है। लेकिन शिक्षा-सिद्धान्तों के पीछे जब तक कोई दर्शन नहीं होता है तब तक उन्हें तय (निश्चित) कर पाना बड़ा ही कठिन हो जाता है। मिशाल के तौर पर लौकिक शिक्षा और पारलौकिक शिक्षा को ही देखा जा सकता है। यहाँ प्रश्न उठ खड़ा होता है कि बच्चे को लौकिकता का ज्ञान कराया जाये या पारलौकिकता का। यदि सामाजिक परिवेश पारलौकिकता में विश्वास रखता है तो उस समाज में उसकी उपयोगिता है, परन्तु यदि समाज पारलौकिकता में विश्वास नहीं रखता है तो फिर पारलौकिकता की शिक्षा उसके लिए व्यर्थ है। इस प्रकार बिना दर्शन के शिक्षा के सिद्धान्त नहीं निर्धारित किये जा सकते। जब तक यह जान नहीं लिया जाता है कि मानव के लिए क्या हितकर है, क्या अहितकर है, तब तक शिक्षा के सिद्धान्त तथा उसके उद्देश्य का निर्धारण नहीं किया जा सकता है। यह बात रमनबिहारी लाल जी के कथन से और स्पष्ट हो जाती है। उनका कहना है- 'हमारे विचार चाहे वे सूक्ष्म का विश्लेषण करते हों चाहे पदार्थ (स्थूल) का, पर वे हमारे दर्शन के अंग होते हैं। जिन विचारों में हमारा विश्वास होता है उनकी प्राप्ति के लिए हम शिक्षा का सहारा लेते हैं। यदि किसी शिक्षा के पीछे कोई दर्शन नहीं है तो उसके उद्देश्य स्पष्ट नहीं होंगे, उद्देश्यों की अनिश्चितता के कारण पाठ्यचर्या भी निश्चित नहीं होगी और तब उचित शिक्षण विधियों का निर्माण भी नहीं किया जा सकता। इस प्रकार बिना दर्शन के शिक्षा चल ही नहीं सकती।'३८
शिक्षा और दर्शन के सम्बन्ध पर एच०एच० हार्न ने अपना विचार बहुत ही स्पष्ट रूप में व्यक्त किया है- 'सभी लक्ष्य अन्त में एक-सा ही अर्थ रखते हैं, पर उनके अर्थों की समानता में अपना स्वयं का अनोखापन है। जिस प्रकार सड़कों पर लगे हुए संकेत बोर्ड विभिन्न मार्गों से एक ही नगर को जाने का संकेत करते हैं, उसी प्रकार विभिन्न तथ्य एक ही अर्थ की ओर संकेत करते हैं। वस्तुत: जीवन की वास्तविकता ही दर्शन का ईश्वरीय नगर है और अनेक संकेत बोर्डों में से शिक्षा भी एक है।"३९ __इस प्रकार हम देखते हैं कि शिक्षा और दर्शन का बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध है। एक के बिना दूसरा अधूरा है। जिस प्रकार एक चक्के के अभाव में गाड़ी की गति निश्चित रूप से अवरुद्ध हो जाती है, ठीक उसी प्रकार शिक्षा और दर्शन दोनों में से
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