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________________ २२२ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन जीवन दृष्टि से सम्पन्न होते हैं या नहीं यह कहना कठिन है। वर्तमान में उद्दण्डता, अनुशासनहीनता, अनैतिकता, चारित्रिक अधःपतन, माता-पिता तथा गुरु के प्रति श्रद्धाहीनता, राष्ट्रीय भावना की कमी, स्वार्थान्धता आदि दोष इसलिए आ गये हैं कि हमने अपनी मौलिक भूमिका को छोड़कर पराई विधि-विधानों को अपनाने का प्रयास किया है जिनका कि हमारी संस्कृति से तालमेल नहीं बैठता। यद्यपि ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि भारतीय पद्धति के अतिरिक्त अन्य पद्धतियाँ बिल्कुल ही गलत हैं। किन्तु हम दूसरे की नकल करते हैं तो उसकी अच्छाइयों को छोड़ देते हैं और बुराइयों को ग्रहण कर लेते हैं क्योंकि ऐसा हम आसानी से कर लेते हैं। शिक्षा-सुधार : कुछ पहल शिक्षा के प्रमुख तीन आयाम होते हैं जिन पर सुदृढ़ शिक्षा की नींव स्थापित होती है। वे हैं- अभिभावक, शिक्षक और समाज। ये तीन ऐसे प्रमुख स्तम्भ हैं जिन पर बालकों की सुदृढ़ शिक्षा आधारित होती है। इन तीनों के अपने-अपने उत्तरदायित्व होते हैं। परिवार बालकों की प्रथम पाठशाला है जिसके अध्यापक, माता-पिता होते हैं। माता-पिता द्वारा बालकों में संस्कारों के बीज बोये जाते हैं। परन्तु प्रश्न उपस्थित होता है कि क्या आज के माता-पिता अपने बालकों को शिष्टाचार का पालन करनेवाला और सुसंस्कारी बनाने में सक्षम हैं। संस्कारी से मेरा मतलब है विनय और शिष्टाचार का पालन करनेवाला। किन्तु आज बच्चे संस्कारी कैसे बन सकते हैं, क्योंकि माता-पिता का अधिकांश समय आफिसों, क्लबों और होटलों में बीतता है तथा बच्चे नौकरों और आयाओं के द्वारा पलते हैं। ऐसे में हम कैसे सुसंस्कारी बालक की उम्मीद कर सकते हैं? उन पर संस्कार पड़ेगा भी तो नौकरों और आयाओं का। किन्तु ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि सभी नौकरों और आग्याओं के संस्कार बुरे ही होते हैं। सन्तान में सुसंस्कार लाने के लिए स्वयं के जीवन को अर्पण करना पड़ता है। माता-पिता को त्याग एवं संयम का जीवन बिताना पड़ता है। बच्चे के प्रति अभिभावकों के कुछ कर्तव्य बनते हैं जो इस प्रकार हैं - (क) अभिभावक अपने को संस्कारी तथा सदाचारी बनायें। (ख) अपने बालकों को उनके दुश्चरित्र मित्रों से बचायें। (ग) बालकों को नौकरों और आयाओं के पास ज्यादा समय न छोड़ें। (घ) समय-समय पर बालकों को आध्यात्मिक एवं नैतिक मूल्यों का बोध कराते रहें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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