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उपसंहार
आ रही है और कालान्तर में भी निरर्थक सिद्ध नहीं होगी।
गुरुकुल की शिक्षा का रूप न केवल सैद्धान्तिक था, बल्कि व्यावहारिक भी था । आश्रम में गुरु और शिष्य एक परिवार के सदस्य के रूप में रहते थे। गुरु और शिष्य के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध था। गुरु शिष्यों पर उसी प्रकार ध्यान देते थे जिस प्रकार पिता अपने पुत्र पर देता है। इस वातावरण में शिष्य का व्यक्तित्व गुरु के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित होता था। गुरु के आदर्शों को प्राप्त करना ही शिष्य का उद्देश्य होता था। गुरु अपने आचरण से शिष्य को आचारवान बनाते थे। आश्रम में ही विद्यार्थी आत्मनिर्भरता, परिश्रम का महत्त्व, बड़ों के प्रति श्रद्धाभाव, सहपाठियों के साथ भ्रातृभाव का पाठ ग्रहण
करता था।
प्राचीन शिक्षण-प्रणाली के ठीक विपरीत आज की आधुनिक शिक्षण-प्रणाली है जो अधूरी तथा अव्यावहारिक है। आज की शिक्षण - प्रणाली में जो बुराइयाँ आ गयी हैं, उनमें सबसे पहला दोष है कि शिक्षा निरुद्देश्य होती जा रही है। वर्तमान शिक्षणप्रणाली विद्यार्थी को डॉक्टर, इंजीनियर, अधिवक्ता आदि तो बना दे रही है, पर सही मायने में इंसान नहीं बना पा रही है। शिक्षण केन्द्र की व्यवस्था ऐसी है कि शिक्षक और शिक्षार्थी का एक-दूसरे से सीधा सम्पर्क नहीं हो पाता है। दोनों के बीच अलगाव की खाई - सी बनती जा रही है। दोनों में अपने-अपने उत्तरदायित्वों के प्रति उदासीनता और उपेक्षा की भावना जोर पकड़ती जा रही है।
आज की शिक्षा इतनी व्यय साध्य है कि अभिभावकों को खर्च करते-करते मानो उनकी कमर ही टूट जाती है। वर्तमान शिक्षण प्रणाली ने छात्र को किताबी कीड़ा तो अवश्य बना दिया है, किन्तु पूर्ण ज्ञाता या विषय का मर्मज्ञ बनाने में अक्षम है। छात्र चाहे मेधावी हों या अल्पमति, सबको एक ही प्रणाली में शिक्षा ग्रहण करना पड़ता है। नतीजा यह होता है कि अल्पमति के विद्यार्थी कुछ प्रश्नों को रटकर या अन्यान्य प्रकार से वर्ष के अन्त में परीक्षा में उत्तीर्णता प्राप्त कर लेते हैं। प्राचीन शिक्षा में जहाँ व्यक्ति के चरित्र-निर्माण पर बल दिया जाता था, वहीं आधुनिक शिक्षा में नैतिकता, चरित्र-निर्माण, सहनशीलता, तप, त्याग, अनुशासन, आज्ञापालन, कर्तव्यपालन, विनम्रता आदि गुणों का सर्वथा अभाव होता जा रहा है। आज व्यक्ति सच्ची शिक्षा ग्रहण नहीं करना चाहता है उसे सिर्फ उपाधि से मतलब होता है, क्योंकि आज शिक्षा और ज्ञान से ज्यादा रोटी की समस्या कठिन हो गयी है । यही कारण है कि शिक्षा को व्यवसाय से जोड़ दिया गया है, यथा तकनीकी शिक्षा, वैज्ञानिक शिक्षा तथा औद्योगिक शिक्षा आदि।
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