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२१२ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
किन्तु दण्ड देने की प्रक्रिया में दोनों शिक्षण प्रणालियों में कुछ अन्तर भी देखने को मिलते हैं, जो इस प्रकार हैं(१) बौद्ध संघ में सारी प्रक्रिया संघ के समक्ष प्रस्तुत की जाती थी। ज्ञाप्ति की तीन
बार वाचना तथा अन्त में धारणा के द्वारा संघ की मौन सहमति को उसकी स्वीकृति जानकर अपराधी को दण्डमुक्त किया जाता था। जैन प्रणाली में ऐसा विधान नहीं पाया जाता है। शिक्षार्थी पूरे संघ के समक्ष वाचना नहीं करता था, बल्कि अपने गच्छ या संघ के पदाधिकारियों के सम्मुख ही निवेदन करता था। यह प्रक्रिया आज भी विद्यमान है। जैन प्रणाली में एक ही अपराध करने पर जो दण्ड शिक्षार्थियों के लिए था वही दण्ड शिक्षा नियों को भी दिया जाता था, परन्तु बौद्ध प्रणाली में यह नियम देखने को नहीं मिलता है। वहाँ पुरुष एवं महिला के लिए अलग-अलग विधान
थे। पुरुष की अपेक्षा महिला के लिए नियमों की संख्या अधिक थी। (३) जैन प्रणाली में एक विशेषता देखने को मिलती है कि उसमें पद के अनुसार
दण्ड का विधान है। एक ही अपराध के लिए उच्च पदाधिकारियों को कठोर दण्ड दिया जाता था और निम्न पदाधिकारियों को नरम। बौद्ध प्रणाली में यह बात नहीं मिलती। यहाँ सभी को समान दण्ड दिये जाने का विधान है, चाहे वह अधिकारी हो या सामान्य व्यक्ति। दोनों परम्पराओं की दण्ड-व्यवस्था का यह मूलभूत
अन्तर है। (४) जैन प्रणाली में दस प्रकार के दोष मान्य हैं, जबकि बौद्ध प्रणाली में आठ
प्रकार के। जैन प्रणाली में परिस्थितियों के अनुरूप दण्ड दिया जाता था। यदि शिष्य जानबूझ कर अपराध करता था तो उसे गम्भीर (कठोर) दण्ड दिया जाता था तथा वही अपराध अनजाने में अथवा विवशता में हो जाता था तो नरम दण्ड का विधान
था। बौद्ध प्रणाली में इस विधान का अभाव पाया जाता है। (६) बौद्ध प्रणाली में चाण्डालों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं था, जबकि
जैन प्रणाली में चाण्डाल भी श्रमण बन सकता था, जैसा कि 'उत्तराध्ययन' में हरिकेशबल मुनि का वर्णन आता है।
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