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________________ गुरु-शिष्य-सम्बन्ध एवं दण्ड-व्यवस्था २११ में प्रातःकाल, सन्ध्याकाल, दोपहर और आधी रात तथा स्वाध्याय काल में दिन और रात्रि का प्रथम तथा चौथा प्रहर आता है। (२) आचार्य द्वारा नीचे के (प्रथम के) समवशरणको छोड़कर ऊपर के (अन्य) सूत्र की वाचना पहले देने अर्थात् आचाराङ्ग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के अध्ययन को छोड़कर अन्य सूत्र पहले पढ़ावें तो उनके लिए लघु चौमासिक प्रायश्चित्त का विधान था।६७ (३) जो आचार्य या उपाध्याय उन दो शिष्यों, जो सूत्र ग्रहण करने योग्य वय, बुद्धि, विनयादि गुण सम्पन्न हों, में से एक को सूत्र पढ़ाने पर उनके लिये लघु चौमासिक प्रायश्चित्त का विधान था।६८ (४) जो शिक्षार्थी आचार्य, उपाध्याय से बाँचनी लिये बिना अपने मन से शास्त्र की वाचना करने लगता था उसके लिये लघु चौमासिक प्रायश्चित्त का विधान था।६९ (५) जो भावहीन होकर सूत्र का उच्चारण करता था या शब्दों को छोड़कर पढ़ता था उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।७० बौद्धमत (१) जो झूठी विद्याओं को सीखते थे या पढ़ाते थे उन्हें दुक्कट का दोष आता था।७१ (२) धर्म के सार को संक्षिप्त रूप से कहने का विधान होने पर भी जो भिक्षु (शिक्षार्थी) __इस नियम का अतिक्रमण करता था तो उसके लिए पाचित्तिय प्रायश्चित्त का विधान था।७२ (३) जो उपदेश सुनने या उपसोथ में नहीं जाते थे उनके लिये पाचित्तिय प्रायश्चित्त का विधान था।७३ तुलना जैन एवं बौद्ध दण्ड-व्यवस्था के नियमों में काफी समानताएँ दिखायी पड़ती हैं। दोनों ही प्रणालियों में संघ के प्रति किया गया थोड़ा भी अनादर भाव अथवा उसके नियमों की अवहेलना करने पर कठोर दण्ड की व्यवस्था थी। यदि किसी शिक्षार्थी को किसी अपराध के लिये संघ से निकाल दिया जाता था और कोई दूसरा शिक्षार्थी उस अपराधी व्यक्ति का अनुसरण करता था तो वह भी उसी के समान अपराधी समझा जाता था। संघ में प्रवेश के समय दोनों संघों में अत्यन्त सतर्कता रखी जाती थी, क्योंकि दूषित व्यक्ति संघ में अनेक दुराचारों को जन्म दे सकता था। दोनों संघों में शिक्षार्थिनी को परिहार दण्ड देने का निषेध था। सम्भवत: ऐसी उनकी शील सुरक्षा की दृष्टिकोण से किया गया था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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