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________________ गुरु-शिष्य-सम्बन्ध एवं दण्ड-व्यवस्था २०९ पाचित्तिय- अपने अपराधों को संघ या पुग्गल के सम्मुख स्वीकार करने पर इसका निराकरण हो जाता था। भिक्षुओं के लिए ९२ (बानबे) पाचित्तिय दोष तथा भिक्षुणियों के लिए १६६ (एक सौ छियासठ) दोषों का उल्लेख मिलता है।५१ ऐसा आचरण करनेवाले को धर्म से पतित तथा आर्य-मार्ग का अतिक्रमण करनेवाला माना जाता था। पाटिदेसनीय- पाटिदेसनीय अर्थात् प्रतिदेसना अपराध मुख्य रूप से भोजन आदि खाद्य सामग्री से सम्बन्धित है जिसका निराकरण किसी योग्य भिक्षु के समक्ष अपने अपराध को स्वीकार कर लेने से हो जाता था। थुल्लवच्चय- यद्यपि पातिमोक्ख में इस दण्ड का उल्लेख नहीं है, फिर भी जो आत्महत्या, संघ की शान्ति एवं मर्यादा भंग करने की कोशिश करता था या कोई ऐसी वस्तु चुराता था जिसका मूल्य एक मासक से ज्यादा या पाँच मासक से कम होता था तो वह थुल्लवच्चय का अपराधी५२ माना जाता था। इसका निराकरण किसी योग्य भिक्षु के सम्मुख अपने अपराधों को स्वीकार करने से हो जाता था। यह पारांजिक तथा संघादिसेस की तरह ही एक गम्भीर अपराध माना जाता था। दुक्कट- छोटे अपराधों पर दोषी शिक्षार्थी को यह दण्ड दिया जाता था,५३ यथा- मन में बुरी भावना लाने या बुरे कर्मों को करने पर यह दण्ड देने का विधान था। सेखिय नियमों का उल्लंघन करने पर व्यक्ति इस दण्ड का भागी बनता था। यद्यपि पातिमोक्ख में इस दण्ड की चर्चा नहीं की गयी है। दुम्भासित- यह दण्ड बौद्ध धर्मसंघ या किसी के प्रति कटु या बुरे वचनों का प्रयोग करने पर दिया जाता था।५४ इस दण्ड का विधान मुख्यतया शिक्षार्थियों को अपनी वाणी पर संयम रखने के लिए किया गया है। उपर्युक्त विवरण से ऐसा लगता है कि शिक्षार्थी को अपराध की गम्भीरता के अनुसार दण्ड दिया जाता था। विषयों की गम्भीरता के आधार पर कुछ दण्ड-विधान के उदाहरण निम्न हैं चोरी सम्बन्धी दण्ड जैनमत- अपने गच्छ या संघ अथवा दूसरे धर्मावलम्बियों की वस्तु चुराने पर अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त का विधान था।५५ बौद्धमत- किसी वस्तु को बिना दिये हुए ग्रहण करने अथवा चुराने पर पारांजिक प्रायश्चित्त दिया जाता था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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