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________________ सप्तम अध्याय गुरु-शिष्य सम्बन्ध एवं दण्ड- व्यवस्था भारतीय समाज में गुरु का महत्त्वपूर्ण स्थान है। देव, गुरु और धर्म में गुरु का पद मध्यस्थ है। वे मध्यवर्ती होकर देव और धर्म की पहचान कराते हैं। अंधेरे में जिस प्रकार व्यक्ति को कोई भी पदार्थ दिखायी नहीं देता है, ठीक उसी तरह अज्ञानरूपी अन्धकार में मनुष्य बिना ज्ञानमय नेत्रों के अपनी आत्मा के निजी गुणों को नहीं पहचान पाता है। व्यक्ति यह भी नहीं जान पाता है कि हेय क्या है? उपादेय क्या है ? पाप क्या है ? पुण्य क्या है ? बन्धन क्या है ? मोक्ष क्या है ? इन सब सवालों के जवाब के लिए गुरु की आवश्यकता पड़ती है। जहाँ तक गुरु और शिष्य के सम्बन्ध की बात है तो कहा जा सकता है कि एक के बिना दूसरा अपूर्ण है, क्योंकि जब हम 'गुरु' कहते हैं या किसी के द्वारा सुनते हैं तो शिष्य की छवि स्वयमेव सामने आ जाती है और जब विद्यार्थी या शिष्य कहते हैं तो 'गुरु' का स्वरूप स्वभावतः सामने आ जाता है। जब गुरु है तो कोई न कोई उसका शिष्य भी होगा और जब शिष्य है तो कोई न कोई उसका गुरु भी होगा। तत्कालीन परिस्थितियों के अध्ययन से पता चलता है कि छात्र गुरुकुल में अपने सहपाठियों एवं शिक्षकों के साथ बड़े ही उल्लास के साथ सह-जीवन प्रारम्भ करता था । गुरुकुलों का वातावरण आत्मीयता से ओत-प्रोत होता था। गुरु और शिष्य दोनों निकट सम्पर्क में रहते थे और उनकी यह निकटता एकरसता के भाव को जोड़नेवाली होती थी । 'उपनिषद्' में वर्णित दीक्षान्त सन्देश से प्राचीनकालीन गुरु-शिष्य के सम्बन्ध पर अच्छा प्रकाश पड़ता है " तुम सत्य बोलना, धर्म का आचरण करना, जो अध्ययन किया है उसके स्वाध्याय - चिन्तन में कभी लापरवाह मत होना और जीवन में कर्तव्य करते हुए कभी कर्तव्य - अकर्तव्य का प्रश्न तुम्हारे सामने आये, सदाचार और अनाचार की शंका उपस्थित हो तो जो हमने सदाचरण किये हैं, जो हमारा सुचरित्र है, उसी के अनुसार तुम आचरण करते जाना, पर अपने कर्तव्य से कभी मत भटकना । " "१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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