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________________ १९४ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन अर्थ होता है एक साथ और विहरक का अर्थ होता है ‘वास करना'। सहवासी बन्धु, भिक्षु, शिष्य आदि को सद्धिविहारिक कहते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अपने उपाध्याय तथा साथ पढ़नेवाले श्रमणों के साथ रहने के कारण सद्धिविहारिक नाम दिया गया हो। ब्रह्मचारी की कोटि में वे विद्यार्थी आते थे जो धर्मेतर ग्रन्थों का अध्ययन करते थे। लेकिन भविष्य में भिक्षु बनने का उनका कोई विचार नहीं होता था।११९ सद्धिविहारिकों के भरण-पोषण का व्यय संघ वहन करता था तथा माणवकों और ब्रह्मचारियों को अपना सभी प्रकार का व्यय स्वयं वहन करना पड़ता था। इससे यह ज्ञात होता है कि बौद्ध शिक्षा-प्रणाली में तीन प्रकार के विद्यार्थी स्वीकार किये गये हैं- सद्धिविहारिक, माणवक और ब्रह्मचारी। तुलना जैन एवं बौद्ध परम्पराओं में कुछ निम्नलिखित समानताएँ तथा विषमताएँ देखने को मिलती हैं(१) दोनों ही परम्पराओं में अध्ययन काल आठ वर्ष ही मान्य हैं। (२) दोनों ही परम्पराओं में शिक्षारम्भ के मौके पर बालकों को फल आदि खाद्य सामग्री देने का विधान है, परन्तु बौद्ध-परम्परा में इनके साथ हिरण्य, सुवर्ण आदि भी देने का उल्लेख मिलता है। (३) जैन परम्परा में शिक्षारम्भ के समय वाग्देवी की प्रतिमा के पूजन का भी विधान है जबकि बौद्ध परम्परा में यह देखने को नहीं मिलता है। (४) दोनों परम्पराओं में गुरु को वस्त्राभूषण आदि दान में दिये जाने का विधान है, परन्तु जैन परम्परा में इससे भी ऊँचे दान का वर्णन आया है। कहा गया है -कलाचार्य, शिल्पाचार्य और धर्माचार्य के लिए जीवन भर तथा उनके पुत्र-पौत्र तक चलने वाली आजीविका का प्रबन्ध करना चाहिए। (५) जैन परम्परा में चार प्रकार के संस्कार लिपि, उपनीति, व्रतचर्या और व्रतावरण क्रिया स्वीकार किये गये हैं। लिपि संस्कार की आयु पाँच वर्ष मानी गयी है। अत: कहा जा सकता है कि जैन शिक्षा का प्रारम्भ पाँच वर्ष की आयु से ही हो जाता था। जैन शिक्षा में उपनीति क्रिया से पूर्व लिपि संस्कार द्वारा शिक्षारम्भ कराये जाने का विधान था जबकि बौद्ध शिक्षा के अन्तर्गत प्रव्रज्या के पश्चात् शिक्षारम्भ कराये जाने का वर्णन है। यह जैन एवं बौद्ध शिक्षा-पद्धति का मूल अन्तर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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