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१८२ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
युवानच्यांग के अनुसार बालक की शिक्षा का प्रारम्भ 'द्वादशाध्यायी' नामक पुस्तक के अध्ययन से होता था। जब बालक सात वर्ष का हो जाता था तब उसे पाँच विज्ञान(१) व्याकरण, (२) शिल्प और कला का विज्ञान, (३) आयुर्वेद, (४) तर्कशास्त्र,
और (५) आत्मविज्ञान पढ़ाया जाता था। व्याकरण की शिक्षा तीन पुस्तकों के माध्यम से दी जाती थी जिनमें प्रथम पुस्तक में ८०००, द्वितीय में ५००० तथा तृतीय में १००० श्लोक समाहित होते थे। इनके अतिरिक्त तीन और पुस्तकें विद्यार्थियों को पढ़नी पड़ती थी जो निम्नलिखित हैं
(१) मण्डक, (२) उणादि, (३) अष्टधातु।७१
इत्सिंग ने कहा है - शिक्षा का प्रारम्भ छ: वर्ष की अवस्था में होता था। बालकों को सबसे पहले 'सिद्धरस्तु' नामक पुस्तक पढ़ायी जाता थी जिसके अन्तर्गत वर्णमाला के ४० अक्षर पढ़ाये जाते थे। इसमें १०,००० शब्दांश ३०० श्लोक के अन्तर्गत निबद्ध थे। यह प्रारम्भिक शिक्षा छ: महीने तक चलती थी। आठवें वर्ष में बालक को पाणिनीसूत्र और धातु का पाठ पढ़ाया जाता था। दसवें वर्ष में अष्टधातु, मण्डक और उणादि का अध्ययन प्रारम्भ होता था। इन तीनों को तीन वर्ष तक पढ़ाया जाता था। पन्द्रहवें वर्ष में ‘काशिकावृत्ति की पढ़ाई प्रारम्भ होती थी जो पाँच वर्षों तक चलती थी। इन सबके अतिरिक्त पातञ्जल महाभाष्य पर ‘भर्तृहरि की टीका', 'भर्तृहरि का शास्त्र', 'वाक्यपदीय' और 'पेईन' नामक पुस्तकों का अध्ययन कराया जाता है। इस तरह व्याकरण का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करके विद्यार्थी 'हेतुविद्या' और 'अभिधर्मकोश' का अध्ययन करता था।७२ पुन: इत्सिंग ने लिखा है कि अधिकतर पाठ्य पुस्तकें सूत्र शैली में या पद्य में निबद्ध थीं जिससे कि विद्यार्थी उन्हें सरलता से कण्ठस्थ कर लेते थे। उनके अनुसार सिद्धिविहारिकों को 'मातृचेट' के दो सूत्र पढ़ाये जाते थे, तत्पश्चात् बालकों को पाँच और दश शीलों के सिद्धान्त को समझाया जाता था।७३
बौद्ध शिक्षा में दो प्रकार के संस्कार बताये गये हैं - (१) प्रव्रज्या और (२) उपसम्पदा संस्कार, ये बौद्धों के विशेष संस्कार हैं। प्रत्येक बौद्ध के लिए प्रव्रज्या ग्रहण करना मोक्षदायक माना गया है, चाहे वह अल्प समय के लिए हो या पूर्ण समय के लिए।७४ सदाचार की दृष्टि से बौद्ध आचार-व्यवस्था के चार विभाग किये गये हैं- (१) पंचशीलधारी, (२) अष्टशीलधारी, (३) दशशीलधारी और (४) दो सौ सत्ताईस शीलधारी। इनमें से प्रथम दो विभाग गृहस्थों के लिए तथा बाद के दो श्रामणेर तथा भिक्षु के हैं।
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