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________________ शिक्षा-पद्धति (१०) स्पर्शन– त्रिकाल विषयक निवास को ध्यान में रखकर समझाना, यथा सम्यक्-दर्शन का स्पर्शन क्षेत्र भी लोक का असंख्यातवाँ भाग ही होता है, परन्तु यह भाग उसके क्षेत्र की अपेक्षा कुछ बड़ा होता है क्योंकि इसमें क्षेत्रभूत आकाशपर्यन्त प्रदेश भी सम्मिलित होते हैं। ३८ क्षेत्र में केवल आधारभूत आकाश ही आता है। स्पर्शन में आधार क्षेत्र के चारों तरफ आधेय द्वारा स्पर्शित आकाश-प्रदेश भी आते हैं। क्षेत्र और आकाश में यही अन्तर है। (११) काल- समयावधि को ध्यान में रखकर समझाना, यथा- भूत, वर्तमान और भविष्यत् अर्थात् अनादिकाल से सम्यक्-दर्शन का आविर्भाव क्रम जारी है।३९ (१२) अन्तर- समय के अन्तर को ध्यान में रखकर समझाना, यथा- एक जीव को लेकर सम्यक्-दर्शन का विरह काल जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अपार्धपुद्गलपरावर्त जितना समझना चाहिए, क्योंकि एक बार सम्यक्त्व का वमन (नाश) हो जाने पर पुन: वह जल्दी से अन्तर्मुहूर्त में प्राप्त हो सकता है। ऐसा न हुआ तो भी अन्त में अपार्धपुद्गलपरावर्त के बाद अवश्य ही प्राप्त हो जाता है।४० (१३) भाव- भावों का कथन करके समझाना। भाव का अर्थ होता है- अवस्था विशेष। औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक इन तीन अवस्थाओं में सम्यक्त्व पाया जाता है।४१ (१४) अल्प-बहुत्व- एक-दूसरे की अपेक्षा न्यूनाधिक ज्ञान करके समझाना, यथा तीन प्रकार के सम्यक्त्व में औपशमिक सम्यक्त्व सबसे अल्प है।०२ उपर्युक्त चौदह प्रकारों को कुछ विद्वान् दो भागों में विभाजित करते हैं, जिनमें से पहले के छ: को अनुयोगद्वार के अन्तर्गत तथा बाद के आठ को प्ररूपणा के अन्तर्गत रखते हैं। (च) स्वाध्याय-विधि- स्वाध्याय-विधि का प्रयोग विशिष्ट ज्ञान की प्राप्ति के लिए किया जाता है। ज्ञान प्राप्त करना, उसे सन्देहरहित विशद और परिपक्व बनाना तथा उसके प्रचार का प्रयत्न करना- ये सभी स्वाध्याय के अन्तर्गत आ जाते हैं। स्वाध्याय शब्द 'स्व'और 'अध्याय' तथा 'सु' और 'अध्याय' से मिलकर बना है जिसका अर्थ होता है 'स्व' अर्थात् आत्मा के लिए हितकर शास्त्रों का अध्ययन करना, स्वाध्याय है। समीचीन शास्त्रों के अध्ययन से कर्मों का संवर और निर्जरा होती है। दूसरा 'सु' अर्थात् सम्यक् शास्त्रों का अध्ययन स्वाध्याय है।४३ इसके पाँच भेद किये गये हैं- (१) वाचना, (२) प्रच्छना, (३) अनुप्रेक्षा, (४) आम्नाय और (५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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