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कौमुदीमित्रानन्दरूपकम् प्रार्थना करता है, किन्तु मित्रानन्द स्वयं विवाहित होने के कारण अपने मित्र मकरन्द से उसका विवाह करवाने का वचन देता है।
सप्तम अङ्क- सिंहलद्वीप में अमात्य कामरति की पत्नी सपत्नी की आशङ्का से कौमुदी को घर से निकाल देती है। भटकती हुई कौमुदी को मार्ग में सुमित्रा भी मिल जाती है जो युद्ध में रत्नाकरदेश के नष्ट हो जाने के कारण मित्रानन्द और मैत्रेय से बिछुड़ गयी थी। मार्ग में एक स्थान पर दोनों को कुछ चोर घेर लेते हैं। चोरों की एकचक्रा नाम की बस्ती का मुखिया पल्लीपति वज्रवर्मा उन दोनों की सम्पत्ति के अपहरण का प्रयास करता है। तभी पल्लीपति के अनुचर एक अन्य व्यापारी को, जो वस्तुत: मकरन्द है, पकड़कर उसके सम्मुख लाते हैं। पल्लीपति द्वारा पूछे जाने पर उसके मुख से मकरन्द नाम सुनकर कौमुदी और सुमित्रा समझ जाती हैं कि यह मित्रानन्द का मित्र वही मकरन्द है जो समुद्र में नौका डूब जाने के बाद बिछुड़ गया था। उसी समय सिंहलद्वीप के युवराज लक्ष्मीपति दूत के माध्यम से पल्लीपति को कौमदी एवं मित्रानन्द के अन्वेषण का आदेश देते हैं। मन में शङ्का होने पर पल्लीपति उन सबसे नाम पूछता है और कौमुदी को वहाँ उपस्थित जानकर अपने दुष्कृत्य पर अत्यन्त दु:खी होता है। पुन: कौमुदी से सुमित्रा एवं मकरन्द के विषय में जानकर स्वयं उनका विवाह करवाने का निश्चय करता है और सन्देशवाहक को कौमुदी आदि को प्रात:काल युवराज के सम्मुख प्रस्तुत करने का सन्देश देकर वापस भेज देता है। ___अष्टम अङ्क- कौमुदी एवं सुमित्रा को एकचक्रा नगरी घुमाने निकला मकरन्द घूमते-घूमते एक धूर्त कापालिक की मायानगरी में पहुँच जाता है। यह कापालिक वस्तुत: वही सिद्ध है जिसे मित्रानन्द और मैत्रेय ने वरुणद्वीप में पाशपाणि के चङ्गल से मुक्त कराया था। कोमदी और सुमित्रा में कामासक्त वह धूर्त कापालिक छल से मकरन्द को मारने का प्रयास करता है। मकरन्द तो किसी प्रकार प्राणरक्षा में सफल हो जाता है, किन्तु कापालिक कौमुदी और सुमित्रा को लेकर अदृश्य हो जाता है।
नवम अङ्क- मकरन्द भटकता हुआ रङ्गशालापुरी में पहुँच जाता है। वहाँ नरदत्त नामक एक कपटी व्यापारी उसकी रत्नादि समस्त सम्पत्ति हड़पने का प्रयास करता है। इस विवाद को सुलझाने हेतु दोनों युवराज के समक्ष जाते हैं। वहाँ भी नरदत्त छलपूर्वक मकरन्द की सम्पत्ति को अपना सिद्ध करने का प्रयास करता है और उसके कपटजाल में फँसकर युवराज मकरन्द को मृत्युदण्ड देने का आदेश दे देता है। उसी समय पल्लीपति वज्रवर्मा मित्रानन्द को खोजकर और साथ लेकर वहाँ आता है। मित्रानन्द युवराज को बताता है कि मकरन्द उसका भाई है, तो युवराज
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