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________________ दशमोऽङ्कः ( आत्रेयी तथा करोति । ) सिद्धाधिनाथः— महापुरुष! सार्वकामिकमिदं शाश्वतिकमग्निकुण्डम् । भगवतः पञ्चबाणस्य पुरतो वनितया स्वयमस्मिन्नाहुतीकृतः स्वर्गसुन्दरीणां पतिर्भविष्यसि । तदिदानीं क्लेशसहस्रपिच्छिलं पितृ-मातृ-पुत्र- कलत्र- स्वापतेयप्रेमाणमपहाय परलोकमधितिष्ठासुः प्रशान्तेन चेतसा स्मर किमपि दैवतमिष्टम् । पुरुषः- (सविनयमञ्जलिं बद्ध्वा ) शीर्णनिः शेषसंसारव्यापारावेशवैशसम् । स्मरामि निष्ठितक्लेशं देवं नाभिसमुद्भवम् । । १५ । । सिद्धाधिनाथ : - ऐहिकमपि किमपि शरणं प्रतिपद्यस्व । पुरुष:- ऐहिकः पुनरनङ्गदासो योनिसिद्धः शरणम्, यो मया वरुणद्वीपे स्वयमुपकृतः । सिद्धाधिनाथ:- कथं भवान् मित्रानन्दः ? १८५ ( आत्रेयी वैसा ही करती है | ) सिद्धाधिनाथ - महापुरुष ! यह सतत प्रज्वलनशील अग्निकुण्ड समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला है । भगवान् कामदेव के सम्मुख इस युवती द्वारा स्वयं आहुति दिये जाने पर तुम स्वर्ग की सुन्दरियों ( अप्सराओं) के पति बनोगे । अतः अब सहस्रों कष्टों से आक्रान्त पिता, माता, भाई, स्त्री, सम्पत्ति इन सभी का मोह त्याग कर और परलोकगमन के इच्छुक होकर शान्त मन से किसी इष्ट देव का स्मरण करो । पुरुष - (विनयपूर्वक हाथ जोड़कर) मैं नाभि के पुत्र भगवान् ऋषभदेव का स्मरण करता हूँ, जिन्होंने समस्त सांसारिक क्रियाकलापों से होने वाले समस्त पापों को नष्ट कर दिया है और इसीलिए समस्त क्लेशों से मुक्त हैं ।। १५ ।। सिद्धाधिनाथ - किसी ऐहिक व्यक्ति का भी स्मरण कर लो। पुरुष - इस लोक में तो अनङ्गदास नामक सिद्ध ही शरण है, जिसका वरुणद्वीप में मैंने स्वयं उपकार किया था । सिद्धाधिनाथ— क्या आप मित्रानन्द हैं? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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