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कौमुदीमित्रानन्दरूपकम् ततः कथयत केयमनमा सुधावृष्टिः?
वज्रवर्मा- सर्वमहं रजन्यां विज्ञपयिष्यामि। इदानीं पुनर्मध्याह्नसन्ध्यामाधातुं प्रयातु देवः। मित्रानन्दोऽप्यध्वश्रममपनयताम्। चारायण:- देव! यदभिधत्ते वज्रवर्मा तदस्तु।।
(इति निष्क्रान्ता: सर्वे) नवमोऽङ्कः समाप्तः।।
तो आप बतलावें कि विना बादल के ही यह सुधावृष्टि (आकस्मिक आगमन)
कैसे?
वज्रवर्मा- सब बातें मैं रात में बतलाऊँगा। इस समय आप सायंकालीन सन्ध्यावन्दन हेतु जायें। मित्रानन्द भी यात्रा की थकान दूर कर ले। चारायण- देव! वज्रवर्मा जैसा कहते हैं, वैसा ही हो।।
(सभी निकल जाते हैं।) ।।नवम अङ्क समाप्त।।
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