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कौमुदीमित्रानन्दरूपकम्
सार्थवाहः - अपरोऽप्यस्ति वेलन्धरपुरनिवासी नरदत्तनामा सार्थाधिपतिः ।
पल्लीपतिः - अरे ! कथं स न सङ्गृहीत: ?
पदाति:- सोऽपि सङ्गृहीतः परं सार्थ एव तिष्ठति ।
पल्लीपतिः - अरे पुरुष ! गत्वा ब्रूहि कङ्कालकम् यथा-सार्थद्रविणमशेषमपि पल्ल्यां प्रवेशय ।
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(पुरुषो निष्क्रान्तः । )
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सार्थवाहः - ( दक्षिणाक्षिस्फुरणमभिनीय सहर्षम् ) निश्चितमयमस्माकं तस्करोपद्रवः शुभोदर्कः । ( पुनः सुमित्रां साभिलाषमवलोक्य) अहो! बाह्यनेपथ्यैरकदर्थितो नेत्रपात्रैकलेह्यः कोऽपि चारिमा । यतः - वक्त्रं चन्द्रविलासि पङ्कजपरीहासक्षमे लोचने,
वर्णः स्वर्णमलङ्करिष्णुरलिनीजिष्णुः कचानां चयः । वक्षोजाविभकुम्भविभ्रमहरौ गुर्वी नितम्बस्थली,
वाचां मार्दवमुज्ज्वलं युवतिषु स्वाभाविकं मण्डनम्।। ९ । ।
सार्थवाह - वेलन्धरपुरनिवासी नरदत्त नामक एक अन्य सार्थवाह भी है। पल्लीपति - अरे ! क्या वह नहीं पकड़ा गया ?
सैनिक - वह भी पकड़ा गया और दूसरे के साथ ही है ।
पल्लीपति - अरे पुरुष ! जाकर कङ्काल से कहो कि सार्थवाह का समस्त धन पल्ली में ले आये। ।
( पुरुष निकल जाता है | )
सार्थवाह - ( दायीं आँख के फड़कने का अभिनय करके) चोरों का यह उपद्रव हमारे लिए अवश्य ही मङ्गलकारी है। (पुनः सुमित्रा को आसक्तिपूर्वक देखकर) अहो !
(इस सुमित्रा का) मुख चन्द्रमा के समान कान्तिमान् है, आँखें कमल के सौन्दर्य का उपहास करने में सक्षम हैं, शरीर का रङ्ग स्वर्ण को भी अलङ्कृत करने वाला और केशपाश की शोभा भ्रमरपंक्ति की शोभा को भी जीतने वाली है, स्तनयुगल हाथी के कपोलों की शोभा का हरण करने वाले, विशाल नितम्बस्थली और वाणी में सरलता है- इस प्रकार युवतियों में उपलब्ध सभी नैसर्गिक गुण इस सुमित्रा में सुलभ है ।। ९ ।।
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