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कौमुदीमित्रानन्दरूपकम्
ततः सर्वाभिरपि सर्वतो दत्तदृष्टिभिः पिहितनेपथ्याभिर्वाचंयमाभिश्च
त्वरिततरं गन्तव्यम् ।
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बालक:- अम्ब! बुभुक्खिदो म्हि ।
(अम्ब ! बुभुक्षितोऽस्मि । )
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(सर्वाः सभयं परिक्रामन्ति । )
बालक:
स्थविरः- (सरोषं यष्टिमुद्यम्य) अरे ! तिष्ठ, मा रोदी:, अन्यथा कर्णावुत्पाटयिष्यामि |
( वृद्धा हस्तसंज्ञया बालकं वारयति । )
(तारस्वरं प्रलपन्) अम्ब ! अपूपं देहि मे ।
(बालकः सभयमास्ते । )
सर्पकर्ण:
यथाऽयं भारभुग्नकन्धरः शनैः प्रचारी स्थविरस्तथा जाने सद्रविणोऽयं सार्थः । भवतु । स्थविरं पृच्छामि । ( उच्चैः स्वरम्) आर्य! क्व प्रस्थितोऽसि ?
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अतः सभी लोग सब तरफ ध्यान से देखते हुए छिपकर चुपचाप यहाँ से शीघ्र भाग चलें ।
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(सभी भयपूर्वक घूमते हैं । )
बालक - माँ! मुझे भूख लगी है।
( वृद्धा हाथ के इशारे से बालक को मना करती है ।) बालक - (जोर से रोते हुए) माँ! मुझे मालपुआ (पूड़ा) दो ।
स्थविर - (क्रोधपूर्वक छड़ी उठाकर ) अरे ! चुप रहो, मत रोओ, अन्यथा कान उखाड़ लूँगा ।
( बालक डर से शान्त हो जाता है | )
सर्पकर्ण - जिस प्रकार यह वृद्ध भार से कन्धा झुकाकर धीरे-धीरे चल रहा है, उससे प्रतीत होता है कि इस व्यापारी के पास ( प्रचुर ) धन है। अच्छा! इस वृद्ध से पूछता हूँ । (तेज आवाज में ) आर्य! आप कहाँ जा रहे हैं?
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