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कौमुदीमित्रानन्दरूपकम्
आठवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में कन्नौजनरेश 'यशोवर्मा' के आश्रित 'भवभूति' नामक प्रख्यात नाटककार हुए। स्वयं यशोवर्मा ने भी रामाभ्युदय नामक नाटक की रचना की जो दुर्भाग्यवश सम्प्रति अनुपलब्ध है। महाकवि भवभूति की प्रतिष्ठा नाट्यजगत् में कालिदास के बाद सर्वाधिक है। इनकी तीन कृतियों में सर्वोत्कृष्ट उत्तररामचरित नामक सात अङ्कों का नाटक है जिसमें रामकथा का उत्तरार्ध वर्णित है। इसमें भवभूति ने बड़े मनोयोग से एकमात्र 'करुण रस' को ही सभी रसों का मूल सिद्ध किया है- 'एको रसः करुण एव .।' दूसरे नाटक महावीरचरित में रामकथा का पूर्वार्ध वर्णित है । तीसरी कृति मालतीमाधव दश अङ्कों का विशाल प्रकरण है। इसमें मालती और माधव की प्रणयकथा का अत्यन्त मनोहारी चित्रण है । भवभूति के पश्चात् 'भट्टनारायण ने महाभारत पर आधारित कथावस्तु वाले प्रसिद्ध नाटक वेणीसंहार की रचना की। यह नाटकीय संविधान की दृष्टि से अत्यन्त उत्कृष्ट कोटि की रचना है और यही कारण है कि धनञ्जय, विश्वनाथ प्रभृति ग्रन्थकारों ने इससे अनेक उद्धरण दिये हैं। आठवीं शताब्दी के ही एक अन्य प्रख्यात नाटककार 'मायूराज' (अनङ्गहर्ष) ने उदयन और वासवदत्ता की कथा पर आश्रित एक उत्कृष्ट नाटक तापसवत्सराज की रचना की। मायूराज के ही एक अन्य नाटक उदात्तराघव का उल्लेख आनन्दवर्धन, राजशेखर, धनिकप्रभृति आचार्यों ने अनेकशः किया है, किन्तु रामकथाश्रित यह नाटक दुर्भाग्यवश सम्प्रति उपलब्ध नहीं है।
VI
नौवीं शताब्दी में सुविख्यात नाटककार 'मुरारि' ने रामकथा पर आधृत सात अङ्कों वाले अनर्घराघव नामक उत्कृष्ट नाटक की रचना की, किन्तु इस नाटक में अभिनेयता की अपेक्षा काव्यात्मक चमत्कार का ही प्राधान्य है। नौवीं शताब्दी के ही उत्तरार्ध में काव्यमीमांसाकार 'यायावरीय राजशेखर' (८८०-९२० ई०) ने बालरामायण, बालभारत, कर्पूरमञ्जरी और विद्धशालभञ्जिका - इन चार महत्त्वपूर्ण रूपकों की रचना की। बालरामायण राजशेखर का सर्वोत्तम नाटक है जिसके दश अङ्कों में रामकथा को भव्य नाटकीय रूप दिया गया है । बालभारत महाभारत की कथा का विस्तृत नाटकीय रूप था, किन्तु दुर्भाग्य से अभी तक इसके केवल दो अङ्क उपलब्ध हो सके हैं। कर्पूरमञ्जरी चार जवनिकान्तरों में विभक्त प्राकृत भाषा में लिखित 'सट्टक' (उपरूपकभेद) है और विद्धशालभञ्जिका चार अङ्कों की संस्कृत में निबद्ध नाटिका है। राजशेखर के रूपकों में लम्बे-लम्बे संवादों और शार्दूलविक्रीडित जैसे विशाल छन्दों का बाहुल्य होने से उनमें अभिनयपक्ष गौण और काव्यात्मक चमत्कार प्रधान है। राजशेखर के ही समकालीन और कन्नौजनरेश
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