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________________ भूमिका संस्कृत नाट्यसाहित्य का विकास - संस्कृत नाट्यसाहित्य के विकास का मूल वेदों में ही निहित है। वैदिक साहित्य से लेकर अद्यावधि नाट्यसाहित्य के विकास की अजस्र धारा सतत प्रवहमान है। ऋग्वेद के पुरूरवा-उर्वशी-संवाद, इन्द्र-इन्द्राणी-संवाद, सरमा-पणी-संवाद, यम-यमी-संवाद इत्यादि स्थलों में नाट्य के बीज स्पष्टत: वर्तमान हैं, किन्तु इस काल की कोई स्वतन्त्र नाट्य-रचना उपलब्ध नहीं है। लौकिक साहित्य के आदि काव्यों रामायण और महाभारत में अनेकत्र उल्लिखित नट, नर्तक, नायक, गायक, शैलूष आदि शब्द प्रत्यक्षत: नाट्य से सम्बद्ध हैं। रामायण के उल्लेखानुसार नाटकों में पुरुष पात्रों के साथ स्त्रियाँ भी अभिनय किया करती थीं शैलुषाश्च तथा स्त्रीभिर्यान्ति ............। रामायण, २/८३/१५ महाभारत के खिलपर्व हरिवंशपुराण में अध्याय ९१ से ९६ तक यह उल्लेख है कि वज्रनाभ नामक राक्षस की नगरी में रामायण एवं कौबेररम्भाभिसार नामक नाटक का अभिनय किया गया था। 'महर्षि पाणिनि' (५०० ई०पू०) की अष्टाध्यायी के दो सूत्रों'पाराशर्यशिलालिभ्यां भिक्षुनटसूत्रयोः' (४/३/११०) एवं 'कर्मन्दकृशाश्वादिनिः' (४/३/१११) में 'शिलालि' एवं 'कृशाश्व' नामक दो नटसूत्रकारों का स्पष्ट निर्देश है। इसके अतिरिक्त पाणिनि ने 'जाम्बवतीजय' नामक एक नाटक की भी रचना की थी जिसका उल्लेख निम्नलिखित श्लोक में किया गया है - स्वस्ति पाणिनये तस्मै येन रुद्रप्रसादतः। आदौ व्याकरणं प्रोक्तं ततो जाम्बवतीजयम्।। अष्टाध्यायी पर महाभाष्य के रचयिता ‘महर्षि पतञ्जलि' (लगभग १८० ई०पू०) ने भी कंसवध और बलिबन्ध नामक नाटकों के अभिनय का उल्लेख किया हैये तावदेते शोभनिका नामैते प्रत्यक्षं कंसं घातयन्ति प्रत्यक्षं च बलिर्बध्नन्तीति। महाभाष्य, ३/२/१११ उपर्युक्त विवरण से इतना तो स्पष्ट है कि वैदिक काल से लेकर रामायण, महाभारत के काल तक नाट्यकला का पूर्ण विकास हो चुका था और महत्त्वपूर्ण अवसरों पर नाटकों का अभिनय भी किया जाता था, परन्तु उन नाटकों को ग्रन्थरूप में निबद्ध किया गया था अथवा नहीं, यह निश्चय कर पाना सम्भव नहीं है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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