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________________ 35 मेघ-युक्त दिन में अधखिली स्थल कमलिनी के समान भू-पृष्ठ पर लुंठित पड़ी रहती है। आलोक्यास्यास्तव विरहजं थेष्टितं यन्न भिन्नं तज्जानीमो वयमिति निजं वज्रसारं हृदेतत् । कारुण्यं तत्सदयहृदयात्रोचितं ते विधातुं प्रायः सर्वो भवति करुणावृत्तिराद्रान्तरात्मा।।।। ६. आप के विरह से उत्पन्न इस की चेष्टा को देखकर जो विदीर्ण नहीं हो गया उस अपने हृदय को मैं वज़ के समान कठोर मानती हूँ। अतः हे दयालु- हृदय ! आप को इस पर दया करना उचित है क्योंकि प्रत्येक कोमल हृदय वाला मनुष्य दयालु होता है। अस्मद्वाक्यं घदि न हि भवान् मानयिष्यत्यदोऽपि प्राणत्यागं तदियमचिरात् सा विधास्यत्यवश्यम्। भूयो भूयः किमिह बहुना जलियतेनाSत्र भावि प्रत्यक्षं ते निखिलमचिराद् भ्रातरुक्तं मया यत् ।।१०।। १00. यदि आप मेरे इस वाक्य को भी नहीं मानेंगे तो यह शीघ्र अवश्य प्राण त्याग देगी। पुनः पुनः कहने से क्या लाभ है? हे बन्धु ! मैंने जो कहा है वह शीघ्र आप को प्रत्यक्ष ज्ञात हो जायेगा। वाव्यिग्रां तुदति न तथा त्वदियोगोऽहनीमां यद्धात्री कृतबहुशुचं चन्द्ररोचिश्चितायाम्। पश्यत्वेनां स्वयमपि भवानध भूमीशयानां तामुन्निद्रामवनिशयनासन्नवातायनस्थः ।। १०१ ।। १०१. बहुत चिंतित रहने वाली कोशा को चाँदनी से भरी रात्रि में आय का वियोग जितना पीडित करता है। उतना दिन में नहीं, क्योंकि उस समय यह बात-चीन में फंसी रहती है।' अतः आज आप स्वयं ही भूमि पर बिछी शय्या के ऊपर जो खिड़की है उस में स्थित होकर भूमि पर लेटी और जगती कोशा को देख लें। विज्ञप्ति मे सफलय कुरु स्वं मनः सुप्रसन्नं सख्या साकं मम भज पुनर्देव ! भोगान विचित्रान। वामाक्ष्यस्यास्त्वयि सति मुहुः स्पन्दमेत्य प्रसन्ने मीनक्षोभाच्चलकुवलयश्रीतुलागेष्यतीव ।।१०२।। १०२. हे देव ! मेरी बिनती सफल करें, अपना मन प्रसन्न करें और मेरी सखी के साथ विचित्र भोग भोगें। आप के प्रसन्न हो जाने पर इस की बायीं आँख बार-बार फड़क कर मछलियों के चलने से कम्पित नील कमल के समान शोभा प्राप्त कर लेगी।। जेष्यत्याऽऽस्यं प्रमुदितमलं मेशमुक्तस्य शस्यां शोभामिन्दोर्विकसितरुचेश्वारूरोचिश्चितं साक प्राप्ते प्रीतिं भवति सुभगाSSनन्दितायाः किलाऽस्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002079
Book TitleShildutam
Original Sutra AuthorCharitrasundar Gani
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages48
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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