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________________ सन्दर्भ-ग्रन्थ १. भवभूति (आठवीं शताब्दी) मेघदूत की शैली से प्रभावित होने वाले प्रथम कवि हैं। उन्होंने किसी स्वतन्त्र दूतकाव्य की रचना तो नहीं की है, परन्तु मालतीमाधव में मेघदूत की कल्पना का पूर्ण रूपेण अनुकरण किया है। उक्त प्रकरण का नायक माधव मेघ के द्वारा मालती को मेघदूतीय - शैली में इस प्रकार सन्देश देता हुआ चित्रित किया गया है। कच्चित् सौम्य ! प्रिय सहघरी विद्युदालिंगतित्वामाविर्भूत प्रणयसुमुखाश्यातका वा भजन्ते । पौरस्त्योवा सुखयति मरुत्साधुसंवाहनाभिर्विष्वग्विभ्रत्सुरपतिधनुर्लक्ष्म लक्ष्मीवदेतत् । 19/25 दैवात् पश्येर्जगति विचरन् मत्प्रियां मालतीं थेदाश्वास्यादौ तदनुकथयेमघवीयामवस्थाम् । आशातन्तुर्न च कथयतात्यन्तमुच्छेदनीयः प्राणत्राणं कथमपि करोत्यायताक्ष्याः स एकः 119/25।। इस वर्णन को हम लघु मेघदूत की संज्ञा दे सकते हैं। २. डॉ. रविशंकर मिश्र ने जैन मेघदूत की भूमिका में दूतवाक्यम्, दूतघटोत्कचम् और नल चम्पू को भी दूत काव्यों की श्रेणी में रखा है। मेरे विचार से उक्त तीनों रचनायें दूतकाव्य की कोटि में नहीं आती है। सन्देश- प्रेपण अनादिकाल से मानव-प्रकृति का नैसर्गिक व्यापार रहा है। वैदिक साहित्य से लेकर आधुनिक प्रान्तीय भाषाओं के साहित्यों और लोकगीतों में भी सर्वत्र उसके दर्शन होते हैं। अतः सन्देश - प्रेषण मात्र से किसी रचना को मेघदूत से प्रभावित दूतकाव्य या सन्देशकाव्य की श्रेणी में रखना अनुचित है । शैली की दृष्टि से दूतवाक्यम् और दूतघटोत्कचम् रूपक हैं और मेघदूत से प्राचीन भी है। नल चम्पू की रचना - मिश्रित चम्पू शैली में हुई है। 1 3. विमलाभा सुप्रभा -- मोक्खसुहं च विसालं, सव्वट्ठ सुहं अणुत्तरंजं च । जे सुचरिय सामण्णा, ण दुल्लहं दुल्लहं तेसिं । । पृ. 288 ।। सल्ले समुद्भरित्ता, अभयं दाऊण सव्वजीवाणं । जे सुट्ठिया दमपहे, ण दुल्लहं दुल्लहं तेसिं । । पृ. 288 ।। 4. नेमिदूत सांगण - पुत्र विक्रम कवि की कृति है । कवि का अनुमानित समय 14वीं शती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002079
Book TitleShildutam
Original Sutra AuthorCharitrasundar Gani
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages48
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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