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________________ ऐसी आ चुकी है कि तंत्र साधना निकृष्ट मानी जाने लगी है। वास्तव में यह सब साधनाएँ बड़ी सूक्ष्म और तत्काल प्रभाव दिखाने वाली है । अतः इसकी संक्षिप्त चर्चा अपने अध्ययन की सर्वांगीण पुष्टि के हेतु हम आवश्यक समझते हैं। तंत्र शब्द को सिद्धान्त, मार्ग, शास्त्र, शासन, व्यवहार, नियम, शिवशक्ति की पूजा, आगम, कर्मकाण्ड, इत्यादि के रूप में लिया गया है। तंत्र शब्द 'तन्' और 'त्रय' इन दो धातुओं के संयोग से बना है, जिसके अनुसार प्रकृति और परमात्मा को स्वाधीन करना है। परमात्म पद की प्राप्ति ही तंत्र साधना है। और सभी अनुष्ठान इसमें समाविष्ट हैं । २७ कौलमार्ग और वाममार्ग तंत्रशास्त्र के दो प्रमुख भाग हैं । २८ तांत्रिक उपासना का भेद अद्वैत सिद्धि है। इसके लिये उपासना के अनेक मार्ग बताये गये हैं । २९ साधना में मुद्रा महत्त्वपूर्ण अंग है। इसमें आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि क्रियाओं का समावेश होता है। ये क्रियाएँ शारीरिक और मानसिक बल प्रदान करती हैं। बौद्ध मत के अनुसार वज्रयान अथवा मंत्रयान प्रणाली का संदर्भ मिलता है। इसमें अनेक सम्प्रदाय हुए हैं । ३० जैन आचार्य भी यति तांत्रिक साधना का माध्यम स्वीकार करते हैं । ३१ जैन दर्शन में तो योग को ही तंत्र कहा है। और तीर्थ, मार्ग प्रवचन, सूत्र, ग्रंथ, पाठ आदि भी तंत्र के पर्यायवाची शब्द माने गये हैं । ३२ संक्षेप में तंत्र साधना शक्ति उपासना का स्वरूप धारण करती है और विष्णु उपासना, शिवोपासना, गणपति उपासना, सूर्य उपासना और शक्ति उपासना नामक पाँच भेद हैं। शक्ति उपासना ही प्रायः बौद्ध उपासना में 'दण्डनी' अथवा 'तारा' और हीनयान सम्प्रदाय में 'मणिमेख्ला देवी' है। इसी प्रकार जैन विचार धारा में 'पद्मावती देवी' का स्वरूप ही शक्ति देवी का स्वरूप माना जाता है। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि तंत्र साधना भारतीय साधना प्रणाली में बहु आयामी है और इसके कारण समाज को पर्याप्त दुष्परिणाम भी भोगने पड़े हैं। परंतु विविध स्वरूप और आकार में इस पद्धति का निरूपण चिन्तन और परिष्कृत साहित्य निर्माण करना बहुत आवश्यक है । प्रणालियाँ साधकों की अपरिपक्व बुद्धि के कारण विकृत हो जाती हैं और भ्रम अथवा भययुक्त वातावरण निर्मित हो जाता है। प्राचीन भारतीय साधना प्रणालियों के साथ-साथ आधुनिक समय में भी उत्कृष्ट कोटि के साधक भारतीय वातावरण में पनप रहे हैं। अति संक्षेप में हम यह आवश्यक समझते हैं कि इन साधकों का विवेचन किया जाये । इसका हेतु यह सिद्ध करना है कि ये साधना प्रणालियाँ आधुनिक प्रगति और विज्ञानमय जीवन में भी संभव हैं और इनकी आवश्यकता भी है। वैसे तो वर्तमानकालीन युग में अनेक हिंदु साधकों ने साधना मार्ग में जैन साधना पद्धति में ध्यान योग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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