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जीव को दो प्रकार के रोग होते हैं। द्रव्यरोग और भावरोग। क्रोधादि भाव रोग हैं, जो शरीरधारी आत्माओं में होते हैं। अनन्तानन्त जन्मों तक ये दुःख देने वाले होते हैं। यदि आपके पास भाव रोग को मिटाने की दवा हो तो दीजिए। द्रव्य रोग मिटाने की दवा तो मेरे पास भी है। मवाद से भरी अंगुली पर कफ का लेप करते ही वह कंचन सी चमकने लगी। भावरोग को मिटाने की दवा देव के पास नहीं है। वह है ध्यानयोगी साधक के पास ही। धर्मध्यान की प्रक्रिया से अनेक लब्धियाँ प्राप्त होती है। जिनका वर्णन आगे करेंगे।
पिण्डस्थ ध्यान की साधना करनेवाले योगी को दुष्ट विद्याएँ, उच्चाटन, मारण, स्तंभन, विद्वेषण, मन्त्रमण्डल, शक्तियाँ आदि कुछ भी हानि नहीं कर सकतीं। शाकिनियां, क्षुद्र योगिनियाँ, पिशाच और मांस भक्षी दुष्ट व्यक्ति उसके तेज को सहन नहीं कर सकते। वे स्वयं तत्काल ही त्रस्त हो जाते हैं। हिंसक प्राणी जैसे कि दुष्ट हाथी, सिंह, शरभ, सर्प आदि जीव भी दूर से ही स्तंभित होकर खड़े हो जाते हैं। उसके शरीर को तनिक भी कष्ट नहीं दे सकते हैं।३३
मातृका ध्यान करने से क्षय रोग, भोजन में अरुचि, अग्नि-मंदता, कुष्टरोग, पेट के रोग, खांसी, दम आदि पर साधक विजय प्राप्त कर सकता है और मृदुभाषी बनता है। तथा ज्ञानियों द्वारा पूजा, सत्कार, परलोक में उत्तम गति और श्रेष्ठपद को प्राप्त कर सकता
__ ध्यान से शरीर की कांति, मुख की प्रसन्नता, स्वर में सौम्यता तथा अवेयक आदि वैमानिक देवों की शरीर सम्पदा प्राप्त करते हैं। वहाँ पर विघ्न बाधा-रहित अनुपम सुख का चिरकाल तक सेवन करते रहते हैं। अनुपम शरीर सम्पदा ध्यान बल से ही प्राप्त होती है। देवलोक से च्युत होनेपर भूतल पर भी उन्हें उत्तम शरीर प्राप्त होता है। ध्यानयोगी साधक गृहस्थवास में रहकर भी विविध प्रकार के भोगों को अनासक्तिपूर्वक भोगते हुए३५ शाश्वत पद (निर्वाण पद) को प्राप्त करते हैं।
रक्ताभिसरण चिकित्सा के अनुसार शरीर के चार विभाग किये जाते हैं। १) मेरुदण्डविभाग, २) श्वसन विभाग, ३) अस्थि संस्थान विभाग और ४) पाचन विभाग। इन सब पर ध्यान प्रक्रिया का प्रभाव पड़ता है। आमाशय, अन्ननली, हृदय, फेफड़े, धमनियां, शिराएं इन सबका संबंध श्वसन तंत्र से है। नाक, श्वासनली तथा फुप्फुस का सीधा संबंध मस्तिष्क से है। आमाशय का मस्तिक में स्थित 'ओटोनोमिक केन्द्र' से सीधा संबंध है। इस केन्द्र के दो विभाग हैं - सिम्पेथेटिक और पेरासिम्पेथेटिका ये दोनों विभाग (भाग) उदर का संचालन करके पाचन रस उत्पन्न करते हैं। ध्यान प्रक्रिया भी मस्तिष्क को समतोल रखकर शरीर के सभी कार्यों का संचालन करके उन्हें प्रभावित
ध्यान का मूल्यांकन
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