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विभाग है, जो बहुत से नाड़ी-तन्तुओं के गुच्छों से एक दूसरे से बंधे हैं। इन गुच्छों को सेतु कहते हैं। लघुमस्तिष्क एक ओर सुषुम्ना शीर्षक से अनेक नाड़ी तन्तुओं के द्वारा जुड़ा रहता है। इसका मुख्य कार्य विभिन्न उत्तेजनाओं से संबंध स्थापित करना और शरीर की क्रिया में समता स्थापित करना। ध्यान का मूल समता है। समता के बिना ध्यान हो नहीं सकता। सेतु लघु मस्तिष्क के दोनों भागों को मिलाये रखता है। बड़े मस्तिष्क से स्नायु-सूत्र सेतु से होकर जाते हैं और यही बड़े मस्तिष्क के दाहिने और बांये गोलार्द्ध से आये सूत्र एक दूसरे को पार करते हैं। जो स्नाय-सत्र दक्षिण गोलार्द्ध से आते हैं वे सेतु के वाम भाग से होते हए शरीर के वाम भाग की पेशियों तक जाते हैं और यदि कहीं दक्षिण गोलार्द्ध में कुछ गड़बड़ी हुई तो शरीर के वाम भाग की ऐच्छिक क्रियाएं अवरुद्ध हो जाती हैं। इसी तरह जो स्नायुसूत्र वाम गोलार्द्ध से आते हैं वे सेतु के दक्षिण भाग से होते हुए शरीर के दक्षिण भाग की पेशियों तक जाते हैं। यदि कहीं गोलार्द्ध में गड़बड़ी हो गई तो शरीर के दक्षिण भाग की गतियां अवरुद्ध हो जाती हैं। ये दोनों ही सम रहें इसलिये उपनिषदों में इडा-पिंगला नाड़ी को ध्यान पद्धति में महत्व दिया है। उपनिषद् में कथन है।३ कि मेद्र से ऊपर और नाभि के नीचे वाले केन्द्र में पक्षी के अण्डे की आकार वाली योनि है। उस स्थान से बहत्तर हजार नाड़ियां निकली (उत्पन्न) हैं, उनमें से मुख्यतः बहत्तर ही प्रधान हैं। उनमें भी दस प्राण वाहिनी नाड़ियां मुख्य मानी गई हैं, जैसे कि इडा, पिंगला, सुषुम्ना, गांधारी, हस्तिजिह्वा, पूषा, यशस्विनी, अलम्बुसा, कुहु और शंखनी। नाड़ियों का यह महाचक्र योगियों के लिये सदैव ज्ञातव्य है। इनमें इडा बांयी तरफ और पिंगला दाहिनी तरफ रहती है। इन दोनों के बीच में सुषुम्ना का स्थान है। गांधारी बांये नेत्र में, हस्तिजिव्हा दाये नेत्र में, पूषा दायें कान में, यशस्विनी बांयें कान में, अलम्बुसा मुख में, कुहु लिंगेद्री में और शंखनी मूल स्थान में रहती है। इस प्रकार ये नाड़ियाँ शरीर के विभिन्न भागों में स्थित हैं। इडा, पिंगला प्राणवाहिनी (मार्ग) में स्थित हैं। इन सभी नाड़ियों में सुषुम्ना ही मुख्य है, क्योंकि वह मन को एकाग्र करने में अग्रन्य है।
मनोविज्ञान की दृष्टि से ध्यान के दो प्रकार किये गये हैं।४- इच्छित और अनिच्छित। इन दोनों के क्रमशः दो-दो भेद हैं - प्रयत्नात्मक, निष्प्रयत्नात्मक, सहज और बाध्या इन सबमें सुषुम्ना नाड़ी द्वारा मन को एकाग्र करना है। मन की एकाग्रता, तल्लीनता
और तन्मयता ही ध्यान है। मन के स्वस्थ होने पर ही ध्यान लग सकता है। मन की स्वस्थता मस्तिष्क की स्वस्थता पर आधारित है। मस्तिष्क का समतोलपणा ही शरीर के प्रत्येक कार्य प्रवृत्ति में सम्यक् प्रकार से संदेशवाहक का कार्य करता है। इसलिये नाड़ी तंत्र का द्वितीय विभाग मन की स्थिरता में अधिक सहायक है।
नाड़ी तंत्र का तीसरा विभाग है१५- स्वतंत्र नाड़ी मण्डल। यह केन्द्रीय नाड़ी मण्डल की ही एक शाखा है। बहुत से नाड़ी-तन्तु सुषुम्ना से मिलकर स्वतंत्र नाड़ी मण्डल में
जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व
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