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(ख) त्रिलोक सार (सिद्धान्तचक्रवर्ति) गा. ५५६, १२६
(ग) त्रिलोक प्रज्ञप्ति २/७ ९५. (क) उववाद मारणंतिय परिणद तस मुल्झिऊण सेस तसा।
गोम्मटसार (जी. का.) गा. १९२ (ख) जैन तत्त्व प्रकाश (अमो. म.) पृ. ४६ । ९६. (क) दुवे रासी पण्णत्ता, तं जहा - जीवरासी चेव, अजीवरासी चेव।
समवाय २ (ख) जीवपन्नवणा य अजीवपन्नवणा या पण्णवणासुत्त (सुत्तागमे)१ ९७. (क) चउदस भूअग्गामा पण्णत्ता तं जहा - सुहुम अपज्जत्तया,
सुहुम पन्जत्तया, बादर अपनत्तया, बादर पन्नत्तया, बेइन्दिया अपन्नत्तया, बेइन्दिया पञ्जत्तया, तेइंदिया अपन्नत्तया, तेइंदिया पन्जत्तया, चउरिंदिया अपज्जत्तया, चरिंदिया पन्नत्तया, पंचिंदिया असन्नि अपज्जत्तया, पंचिंदिया असन्नि पन्नत्तया, पंचिंदिया सन्नि अपज्जत्तया, पंचिंदिया सन्नि पज्जत्तया।
समवायांग १४/१ (ख) भगवती सूत्र २५/१
इह सुहुम बायरेगिदिबितिचउअसन्निसंन्निपंचिंदि।
अपन्नत्ता पन्नत्ता कमेण चउदस जियट्ठाणा। कर्मग्रन्थ ४/२ ९८. (क) पंच पंचेन्द्रिया - एगिदिया जाव पंचिंदिया।
__ स्थानांगसूत्र (सुत्तागमे) ५/५३२ (ख) इग बिय तिय चउपणिदि जाइओ। .
कर्मग्रन्थ, १/३३ ९९. (क) पंच थावरकाया पण्णत्ता, तं जहा
इन्दे थावरकाए, बम्भे भावरकाए, सिप्पे थावरकाये,
संमती थावरकाए, पाजावच्चे थावरकाए। स्थानांगसूत्र ५/४८८ (ख) जीवाजीवाभिगमसूत्र (सुत्तागमे) गा. १०-२६ (ग) एगेन्दिय संसारसमावण्णजीवपण्णवणा पंचविहा पण्णत्ता,
तं जहा - पुढविक्काइया, आउक्काइया, तेउक्काइया, वाउक्काइया, वणस्सइकाइया।
- पण्णवणा १/१२ १००.(क) कति णं भंते इंदिया पण्णत्ता? गोयमा। पंचेंदिया पण्णत्ता।
प्रज्ञापना १५/१/१९१ (ख) पंच इंदियत्था पण्णत्तं तं जहा - सोइंदियत्थे जाव फासिंदियत्थे।
स्थानांगसूत्र ५/५३१ १०१. जीवाजीवाभिगमसूत्र (सुत्तागमे) गा. २८-३०
जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व
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