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से उत्पन्न होता है। "दूसरे के पैसे, दूसरे का माल, दूसरे की पत्नी पुत्रादि, दूसरे की जायदाद, धन धान्य, मकान, गाय, मैंस आदि पशुओं को कैसे हजम करूं, कैसे प्राप्त करूं, किस तरह हड़प कर लूं, रत्न, सोना, चांदी, हीरा, माणेक, मोती, आभूषणों को किस उपाय से प्राप्त करूं, एवं परकीयों का धन किस उपाय से ग्रहण किया जा सकता है," ऐसे क्रूर चिन्तन में सतत तन्मय होना स्तेयानुबंधी रौद्रध्यान है। उसके उपायों का विचार, दांवपेच लगाने का विचार करना, सामने वाले की नजर बचाने, आँखों में धूल डालने आदि की तन्मय विचारधाराओं में चढ़ना एवं चोरी के कार्यों के उपदेश की अधिकता तथा चौर्य कर्म में चतुरता, चोरी के प्रत्येक कार्यों में तत्परता (तन्मयता) होना, जीवों के चौर्यकर्म के लिए निरन्तर चिन्ता उत्पन्न होना तथा चोरी करके भी निरंतर आनन्दित एवं हर्षित होना, दूसरा कोई चोरी का कार्य करता हो तो हर्ष मानना, स्वयं एवं दूसरे के चौर्य कला, कौशलता की प्रशंसा करना, दूसरों की बहुमूल्य वस्तुओं को ठगाई (बल) से प्राप्त करना, सारभूत द्विपद, चतुष्पद जीवों को सामर्थ्यबल से अपना बनाकर भोगना एवं सतत चौर्य कृत्य का चिन्तन, परधन हरण की चिन्ता मन, वचन, काय से स्वयं करना, कराना, अनुमोदना देना इन सबको करते हुए आनन्दित होना ही स्तेयानुबंधी अथवा चौर्यानंदि एवं तस्करानुबन्धी रौद्रध्यान है१६
(४) संरक्षणानुबंधी रौद्रध्यान : इसमें धन संरक्षण में मशगूल होकर उसका उग्र चिन्तन होता है। जीव को अच्छे-अच्छे शब्दादि (शब्द, रूप, गंध, रस, स्पर्श) विषयों की प्राप्ति तथा भोग बहुत पसंद है। इससे उसके साधन रूप, धन, वैभव की प्राप्ति व रक्षा में वह तत्पर रहता है, आरंभ परिग्रह की रक्षा हेतु एवं अपने कुटुम्ब परिवार की रक्षा हेतु, दास दासी, धन धान्य, मकान, वस्त्र, आभूषण, गाय, भैंस, बैल आदि पशु, तोता, मैना आदि पक्षी एवं आधुनिककालीन विभिन्न भोग सामग्री को पाकर उनकी रक्षा हेतु निरन्तर चिन्तित रहना संरक्षणानुबंधी रौद्रध्यान है। इसके अतिरिक्त क्रूर आशय से शत्रुओं का संहार करने की तीव्र भावना, ग्राम, नगर, पुर, पाटन आदि को दग्ध करने की तीव्र इच्छा होना, निष्कंटक राज्य को प्राप्त करने की अभिलाषा होना, राजा बनने की भोगेच्छा होना, स्वयं को प्रबल प्रतापी घोषित करना, धनादि को तिजोरी आदि में रखू ताकि कोई न ले, एवं अग्नि चोरादि का उपद्रव न हो, मैला कुचैला पागल सा रहने से कोई मेरा पीछा न करे, किसी से भी मैत्री न रखें ताकि उनकी बात न सुननी पड़े, मितव्ययता से जीवन चलाऊं, कम मूल्य की वस्तु खरीदूं आदि विविध उपायों से द्रव्य की रक्षा करने की भावना रखना, कुटुम्ब परिवार को हमेशा खुश रखू ताकि वे हर समय काम में आये, मकान आदि की सफाई रखू जिससे गिरे नहीं, प्राण हानि न हो इस प्रकार विविध प्रकार से सम्पत्ति और संतति के रक्षणार्थ विचार करना यह भी विषयसंरक्षण रौद्रध्यान ही है। और भी शरीर रक्षा
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जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व
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