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________________ २३७ पडिलेहणं च पिण्डं, उवहिपमाणं अणाययण वज्ज। पडिसेवनमालोअण, जह य विसोही सुविहियाणं। ओघनियुक्ति (भद्रबाहु)२ २३८ (क) स्थानांगसूत्र १०/४७ (ख) __दसविहा सामाचारी पण्णत्ता तं जहा-इच्छा, मिच्छा, तहक्कारे, आवस्सिया, य णिसीहिया, आपुच्छणा य पडिपुच्छा, छंदणा य णिभंतणा, उवसंपया य काले सामाचारी भवे दसहा। भगवतीसूत्र २५/७/१०१ . (ग) उत्तराध्ययनसूत्र २६/२-४, (घ) आवश्यकी, नैषेधिकी, आपृच्छा, प्रतिपृच्छा, छन्दना, इच्छाकार, मिच्छाकार, तथाकार, अभ्युत्थान, उपसंपदा आवश्यक नियुक्ति गा. ६६६ २३९ (क) अवश्यं करणाद् आवश्यकम्। उद्धत, श्रमण सूत्र (उपा. अमर मुनि) पृ. ६१ समणेण सावरण य, अवस्स कायव्वयं हवइ जम्हा। अन्ता अहो-निसस्स य, तम्हा आवस्सयं नाम।। अनुयोगदार सुत्तं (सुत्तागमे) पृ. १०८८ विशेषावश्यक भाष्य (हेमचन्द्र) गा. ८७५ (घ) अवश्यं कर्तव्यमावश्यकम्। श्रमणादिभिरवश्यम् उभय - कालं क्रियत इति भावः। अनुयोगद्वार (आ. मलयगिरि टीका) उद्धत, श्रमणसूत्र (अमर मुनि) पृ.६१ (ङ) आपाश्रयो वा इदं गुणानाम् प्राकृतशैल्या आवस्सयं उद्धृत, श्रमणसूत्र, पृ. ६१ (च) ज्ञानादिगुणानाम् आसमन्ताद् वश्या इन्द्रिय-कषा यादिर्भाव शत्रवो यस्माद् तद् आवश्यकम्।... ज्ञानादिगुण कदम्बकं मोक्षो वा आसमन्ताद् वश्यं क्रियतेऽनेन इत्यावश्यकम्। आवश्यक सूत्र मलयगिरि वृत्ति उद्धृत, श्रमण सूत्र, पृ. ६२ 888 २३६ जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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