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भूमिका जैन - शास्त्रीय पठन एवं चिन्तन के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं, कि ध्यान की विचारधारा अति प्राचीन एवं व्यापक है। वेद, उपनिषद्, त्रिपिटक, आगम, तथा अन्य दर्शनों, वैचारिक सम्प्रदायों परवर्ती चिन्तकों और परवर्ती दार्शनिक संप्रदायों में भी यह विचारधारा देखने को मिलती हैं। शोधप्रबंध में प्रसंगानुसार ध्यान संबंधी इन विचार धाराओं का भी उल्लेख किया गया है। ___ध्यान की विचारधारा चाहे जितनी प्राचीन या व्यापक हो, जैन धर्म के विशिष्ट विचार के रूप में स्थापित होने के बाद, ध्यान को दर्शन -क्षेत्र में या इसके बाहर के - क्षेत्रों में, विभिन्न आयामों में देखा गया है। इससे इस विचारधारा की उपादेयता स्पष्ट है। इस उपादेयता को विस्तृत एवं स्पष्ट रूप से लोगों के सामने प्रकाश में लाना अत्यावश्यक है। क्योंकि वर्तमान काल में ध्यान की परंपरा प्रायः लुप्त-सी होती प्रतीत हो रही है। उसे अपने निजस्वरूप में लाने के उद्देश्य से ही "ध्यानयोग' विषय पर शोध कार्य करना उपयुक्त प्रतीत हुआ।
सभी दृष्टिकोणों से विचार करने पर तथा वर्तमान कालीन परिस्थितियों का अवलोकन करने से ध्यानयोग में शोध कार्य करने की उपयोगिता प्रतीत हुई। यत्र-तत्र और सर्वत्र ही मानव आधि-व्याधि-उपाधि से संतप्त है। इन त्रिविध दुःखों से शांति पाने का एकमात्र उपाय है - 'ध्यानयोग'। इस माध्यम से ही मानव शांति से जी सकता है। इसलिए भी इस शोध कार्य का विषय 'ध्यानयोग' रखा गया है।
इस पर प्राचीन और आधुनिक जैन विद्वानों ने पर्याप्त मात्रा में लिखा है। किंतु यत्रतत्र बिखरा होने के कारण, उसे सुव्यवस्थित रूप से एक स्थान पर एकत्रित करने की जरूरत महसूस हुई। अतः इस कार्य में भगवान महावीर से लेकर आचार्य कुन्दकुन्द तक, आचार्य कुंदकुंद से आचार्य हरिभद्र तक, आचार्य हरिभद्र से उपाध्याय यशोविजय तक और उपाध्याय यशोविजय से आज तक को ध्यान परंपरा का विशेष संदर्भ लिया गया है।
प्रस्तुत शोध-प्रबंध में छह अध्याय हैं और एक उपसंहार है।
प्रथम अध्याय में भारतीय परंपरा में प्रसिद्ध त्रिविध धाराओं को ध्यान परंपरा के स्वरूप का स्पष्टीकरण किया गया है।
द्वितीय अध्याय में इस विषय से संबंधित आगम तथा आगमेतर साहित्य पर प्रकाश डाला गया है।
तृतीय अध्याय में विभिन्न जैन साधना पद्धतियों के स्वरूप का स्पष्टीकरण किया गया है और उन सब में ध्यान का महत्त्व स्पष्ट किया है।
चतुर्थ अध्याय में जैनागमानुसार कथित ध्यान के स्वरूप का विस्तार के साथ विवेचन किया गया है।
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