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________________ (क) २३. नन्दी स्थविरावली २४. जम्बू के बाद दस बोल बिच्छेद हुए (कल्पसूत्र स्थविरावली) (जम्बुद्वीप प्रज्ञप्ति) जम्बुस्वामी के बाद - १. परम अवधिज्ञान २. मनः पर्यवज्ञान ३. केवलज्ञान ४. परिहार विशुद्ध चारित्र, ५, सुक्ष्म संपराय चारित्र, ६. यथाख्यात चारित्र, ७. पुलाकलब्धि, ८.क्षपक-उपशम श्रेणी ९. आहारक शरीर और १०. जिनकल्पी साधु। २५. (क) परिशिष्ट पर्व सर्ग ९ (आ. हेमचंद्र) (दृष्टव्य पृ. ३६) २६. (१) महागिरि (२) सुहस्ती (३) गुणसुन्दर (४) कालकाचार्य (५) स्कंदिलाचार्य (६) रेवतिमित्र (७) मंगू (८) धर्म (९) चन्द्रगुप्त और (१०) आर्यवन नन्दी स्थविरावली २७. (क) आगम युग का जैन दर्शन (पं. दलमुख मालवणिया) पृ. १६ (ख) जैन दर्शन मनन और मीमांसा (मुनि नथमल) पृ. १११ २८. भगवती सूत्र २०/७० आगम युग का जैन दर्शन (पं. दलमुख मालवणिया) से उद्धृत पृ. २३ जैन साहित्य का बृहत् इतिहास भाग १ प्रस्तावना पृ. ६३ "सव्वेसिमंग - पुव्वाणमेग देसो' धवला टी. पृ. ६८भा. १ कमेण ....... वि आइरिया आयारंग - धरा सेसंग - पुव्वाणमेग देस - धरा य ।। धवला टी. पृ. ६८ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भा. १ से उद्धृत "प्रस्तावना" पृ. ६२ ३१. (क) धवला टीका भाग १ भूमिका पृ. १३ (ख) धवला टी. भाग १ पृ. ६८ ३२. श्री देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणेन श्री वीराद् अशीत्यधिकनवशत (९८०) वर्षे जातेन द्वादशवर्षीयदुर्भिक्षवशाद् बहुतरसाधुव्यापत्तौ बहुश्रुत - विच्छित्तौ च जाताया ....... भव्यलोकोपकाराय श्रुतव्यक्तये च श्रीसंगाग्रहात् मृताविशिष्ट तदाकालीन सर्वसाधून् वल्लभ्यामाकार्य तन्मुखाद् विच्छिन्नावशिष्टान् न्यूनाधिकान् त्रुटिताऽत्रुटितान् आगमालापकान् अनुक्रमेण स्वमत्या संकलय्य पुस्तकारूढाः कृताः । ततो मुलतो गणधरभाषितानामपि तत्संकलनानन्तरं सर्वेषामपि आगमानां कर्ता श्री देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण एव जातः । समाचारी शतक उद्धृत - जैन दर्शन मनन और मीमांसा -(मुनि नथमल) पृ. ११९ जैन साधना पद्धति में ध्यान योग ९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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