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________________ स्पष्टीकरण है। ये सभी विषय ध्यान से संबंधित हैं। धर्मरुचि अनगार के दृष्टान्त द्वारा ध्यानयोगी साधक के लिए निर्दोष आहार विधि का वर्णन किया है। प्रस्तुत भाष्य द्रोणाचार्य वृत्ति सहित सैलाना से प्रकाशित है।३९ (६) पंच कल्प-महाभाष्य :- प्रस्तुत भाष्य ४० पंचकल्प नियुक्ति के विवेचन रूप में है। इसमें करीबन २६६५ गाथाएँ हैं जिनमें भाष्य की ही २५७४ गाथाएं हैं। कल्प व्याख्यान में दो प्रकार के कल्प का विधान किया है - जिन कल्प और स्थविरकल्प। इन दोनों कल्पों पर द्रव्य और भाव से विचार किया गया है। ज्ञान दर्शनचारित्र-त्रिविध संपदा के वर्णन के साथ ही पाँच प्रकार के चारित्र का स्वरूप स्पष्ट किया है। चारित्र को क्षायिक, क्षायोपशमिक और औपशमिक रूप तीन प्रकार का बताया है। ज्ञान भी क्षायिक और क्षायोपशमिक नामक दो प्रकार का है। केवलज्ञान क्षायिक ही और शेष चार ज्ञान क्षायोपशमिक हैं। दर्शन भी -क्षायिक, क्षायोपशमिक और औपशमिक रूप से तीन प्रकार का है। ये सभी ध्यान के ही अंग (साधना) हैं। सभी साधना पद्धति में ध्यान अनिवार्य ही है। चूर्णियाँ आगमों की प्राचीनतम पद्यात्मक व्याख्याएँ नियुक्तियों एवं भाष्यों के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे सब प्राकृत में हैं। गद्यात्मक व्याख्याओं की आवश्यकता प्रतीत होने से उन पर (पद्यात्मक व्याख्याओं पर) संस्कृत-प्राकृत मिश्रित व्याख्याएं लिखी गई, जो चूर्णियों के नाम से प्रसिद्ध हुई हैं। चूर्णियाँ और चूर्णिकार आगम व्याख्या ग्रन्थों पर निम्नलिखित चूर्णियां लिखी गई है - १) आचारांग, २) सूत्रकृतांग, ३) व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती), ४) जीवाभिगम, ५) निशीथ, ६) महानिशीथ, ७) व्यवहार, ८) दशाश्रुतस्कन्ध, ९) बृहत्कल्प, १०) पंचकल्प, ११) ओघनियुक्ति, १२) जीतकल्प, १३) उत्तराध्ययन, १४) आवश्यक, १५) दशवैकालिक, १६) नन्दी, १७) अनुयोगद्वार, १८) जम्बुद्वीपप्रज्ञप्ति । निशीथ और जीतकल्प पर दो-दो चूर्णियां लिखी गई हैं, किन्तु वर्तमान में एक-एक ही उपलब्ध हैं। अनुयोगद्वार, बृहत्कल्प एवं दशवैकालिक पर भी दो-दो चूर्णियां हैं। चूर्णिकारों में मुख्यतः जिनदासगणि महत्तर नाम अधिक प्रसिद्ध है। उन्होंने कितनी चूर्णियां लिखी यह तो कह नहीं सकते, परन्तु निशीथविशेषचूर्णि, नन्दीचूर्णि, अनुयोगद्वार चूर्णि और सूत्रकृतांगचूर्णि-इतनी चूर्णियां तो उन्हीं की मानी जाती हैं। जीतकल्प चूर्णि ध्यान साधना संबंधी जैन साहित्य Jain Education International For Private & Personal Use Only! www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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