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सुकन्या विनोदिनी B.Com. अपने श्रद्धाशील सेवाभावी माता-पिता की सुपुत्री होने का सद्भाग्य कु. विनोदिनी को प्राप्त हुवा है। विलक्षण बुद्धि-प्रतिभा को स्वामिनी विनोदिनी शालेय जीवन से ही सर्वोच्च स्थान प्राप्त करती आयी है। बी. कॉम्. की परीक्षा में भी अच्छे गुण प्राप्त कर चोपडा कुल का नाम रोशन किया है। स्वाभाविक दृढता के कारण जो भी निर्णय करती है, उसका आचरण करने में वह कभी हिचकिचाती नहीं है। सेवाव्रत उसके जीवन का प्रमुख अलंकार है। अध्ययन एवं परीक्षा की निकटता का बोझ सर पर होते हुए भी पू. दादी की अन्तिम घडी में खूब सेवा की। परिस्थिति की प्रतिकूलता में भी वह अपने मन का सन्तुलन दृढता से टिकाए रहती है। अपने कुल की सन्तसेवा की परंपरा स्नेहल विनोदिनी ने संपूर्णतया अंगीकृत कर ली है। आज के युग में प्रचलित विकृतियों के प्रभाव से वह कोसों दूर है। यही कारण है कि जीवन में विशेष कार्य करके अपनी त्याग वृत्ति का आदर्श निर्माण करने की उसकी महत्त्वाकांक्षा है। सादा जीवन उच्च विचार की प्रतिमूर्ति विनोदिनी ने इस ग्रन्थ के प्रकाशन में आर्थिक दायित्व उठाने में अपनी माता के प्रस्ताव का दर्यादिली से समर्थन किया।
__ अपने सभी कुटुंबियों की प्रेरणा से जागृत होकर त्याग वृत्ति का उदाहरण इस ग्रंथ के प्रकाशन की आर्थिक जिम्मेवारी संपतभाऊ ने अपने सर पर उठाकर आदर्श निर्माण किया है। उनकी यही उदारता, दातृत्व शक्ति, सेवावृत्ति सदा वृद्धिंगत होती रहे तथा दिव्य गुणों के पुष्प उनका जीवन सदा सुरभित करते रहें यही मंगल कामना है।
ग्यारह
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