SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तो जीवन जीने का भाष्य है । योग वर्णनात्मक नहीं, प्रयोमात्मक है। योग साहित्य तो आज विपुल मात्रा में प्रकाशित हो रहा है पर योग साधना करने वाले सच्चे और अच्छे साधकों की कमी हो रही है । योग के नाम पर कुछ गलत साहित्य भी प्रकाश में आया है जो साधकों को गुमराह करता है। योग के नाम पर जिसमें भोग की ज्वालाएँ धधक रही हैं। दुःख है, हमारे देश में ऐसी जघन्य स्थितियाँ पनप रही हैं। योग की विशुद्ध परम्परा के साथ 'कितना घृणित खिलवाड़ हो रहा है । अभ्यास के द्वारा कुछ अद्भुत करिश्मे दिखा देना योग नहीं है । पेट पालने के लिए कुछ नट और मदारी भी ऐसा प्रयास करते है। योग तो आत्मिकसाम्राज्य को पाने का पावन पथ है । योग के सधते ही अन्तविकार अंधकार की तरह नौ-दो-ग्यारह हो जाते हैं । आन्तरिक अंगों के साथ आसन, प्राणायाम प्रभृति बाह्य अंगों की भी उपादेयता है । आज आवश्यकता है योग विद्या को विकसित करने की । अनुभवी के मार्ग-दर्शन के बिना योग में सही प्रगति नहीं हो सकती बिना गुरु के योग के गुर नहीं मिल सकते । महामहिम आचार्य प्रवर स्वर्गीय आत्माराम जी महाराज वाग्देवता के वरदपुत्र थे । वे जिस किसी भी विषय को स्पर्श करते तो उसके तलछट तक पहुंचते थे जिससे वह विषय मूर्धन्य मनीषियों को ही नहीं, सामान्य जिज्ञासुओं को भी स्पष्ट हो जाता । वे केवल शब्दशिल्पी ही नहीं थे अपितु कर्म शिल्पी एवं भावशिल्पी भी थे। "जैनागमों में अष्टांगयोग" आचार्य प्रवर की अद्भुत कृति है। उन्होंने जो कुछ भी लिखा है, अनुभूतियों के आलोक में लिखा है। यह ऐसी अमूल्य कृति है जो कभी भी पुरानी और अनुपयोगी नहीं होगी। योग के अनेक अज्ञात/अजाने रहस्य इस में उद्घाटित हुए हैं जो जिज्ञासु साधकों के लिए उपयोगी ही नहीं परमोपयोगी हैं । इस महान कृति को प्रकाश में लाने का श्रेय है-अमर मुनिजी को, जो एक प्रतिभासंपन्न, प्रवचन-कला-प्रवीण मुनि हैं। जब वे प्रवचन करते हैं तो श्रोता झूम उठते हैं। उनकी सम्पादन कला के साथ श्रीचन्द सुराना की की कलम ने कमाल दिखाया है। सुरानाजी कलम-कलाधर हैं। उनकी कलम का जादू ग्रन्थ के प्रत्येक पृष्ठ पर मुखरित हुआ है; अत: सम्पादक-द्वय साधुवाद के पात्र हैं । यह एक ऐसी ऐतिहासिक देन है जो युग-युग तक आलोक प्रदान करती रहेगी। जैन स्थानक, -देवेन्द्र मुनि शास्त्री मदनगंज-किशनगढ़ ५ सितम्बर १९८३ 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy