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________________ नवकार महामन्त्र की साधना ३६३ आकाश और अनुस्वार आकाश तत्त्व हैं । इस प्रकार इसमें अग्नि, आकाश और वायु तोनों तत्त्व हैं । अग्नि तत्त्व कर्म-निर्जरा में सहायक है तथा प्राणशक्ति और प्राण-शरीर को शक्तिशाली बनाता है, वायु तत्व साधक के मनः कोषों को सबल और सक्षम बनाकर मेधाशक्ति को बढ़ाता है, तथा आकाश तत्व साधक में अनेक सद्गुण, कष्टसहिष्णता, समभाव तथा तितिक्षा भाव की वृद्धि करता है एवं बाह्य अवगुणों तथा सन्तापी तरंगों को उसके आभामण्डल एवं तैजस शरीर में प्रविष्ट नहीं होने देता। __अहं की साधना विधि अह की साधना साधक कई रूपों में करता है। सर्वप्रथम वह इसे नाभिकमल में स्थापित करके इसकी साधना तेजोबीज के रूप में करता है। 'अहं' की रेफ को वह रक्तवर्णमय, अग्नि के रूप में देखता है और रेफ के ऊर्व भाग से वह अग्नि की चिनगारियाँ निकलते देखता है तथा फिर अग्नि लपटों से कर्म और नोकर्मों को भस्म होते हए देखता है। इस रूप में 'अहं' कर्म-निर्जरा में सहायक बनाता है। दूसरी प्रकार की साधना विधि में वह 'अहं' पद का ध्यान करता है । आत्म-शुद्धि हेतु वह इसका ध्यान श्वेत वर्ण में चक्ष ललाट में (आज्ञाचक्र में) करता है। आज्ञाचक्र और मणिपूर चक्र (ज्ञान केन्द्र और शक्ति केन्द्र) का सीधा सम्बन्ध है । साधक 'अहं' को शक्ति केन्द्र से उठता हुआ तथा ज्ञान केन्द्र पर पहुँचता हुआ देखता है। प्राण (श्वास) द्वारा चढ़ता हुआ और उश्वास (निश्वास) द्वारा ज्ञान केन्द्र से शक्ति केन्द्र पर आता हुआ देखता है। इस प्रकार साधक एक श्वासोच्छ्वास में 'अहं' पद का शक्ति केन्द्र से ज्ञान केन्द्र तक तथा ज्ञान केन्द्र से शक्ति केन्द्र तक का एक चक्कर पूरा कर लेता है। इस प्रकार के असंख्य चक्र साधक करता है, अपनी प्राणधारा को प्रवाहित करता है। ___ योग की अपेक्षा से शक्ति केन्द्र (नाभिकमल) अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। यहीं से शक्ति का जागरण होता है, और वह ऊर्ध्वगामिनी बनती है । शक्ति केन्द्र से ज्ञान केन्द्र में प्राणधारा के प्रवाहित होते समय मध्यवर्ती आनन्द केन्द्र, विशुद्धि केन्द्र भी स्वयमेव जाग्रत हो जाते हैं। शक्ति केन्द्र और ज्ञान केन्द्र तो जाग्रत होते ही हैं। ज्ञान केन्द्र (आज्ञा चक्र) पर साधक 'अहं' को स्फुरायमान होता हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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