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नवकार महामन्त्र की साधना
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ॐ की साधना विभिन्न रंगों के साथ की जाती है । श्वेत वर्णी ॐ की साधना शान्ति, पुष्टि और मोक्ष प्रद है । ज्ञान तन्तुओं को सक्रिय बनाने के लिए पीले रंग के ॐ का जप ध्यान किया जाता है। लाल वर्णी ॐ का जप ध्यान ऊर्जा वृद्धि करता है । नील वर्णी ॐ की साधना साधक के लिए शान्तिप्रद होती है । श्यामवर्णी ॐ की साधना साधक को कष्टसहिष्णु बनाती है ।
ॐ की साधना का महत्त्व इसलिए अधिक है कि यह पंच परमेष्ठी का वाचक एकाक्षरी मन्त्र है । इसका जप भी अत्यन्त सरल है । साधक उठते-बैठते, चलते-फिरते किसी भी स्थिति में इसका जप कर सकता है । इसका जप श्वासोच्छ्वास के साथ-साथ स्वतः ही होता रहता है | श्वास लेते समय 'ओ' और छोड़ते समय 'म्' की ध्वनि होती ही रहती है । बस, साधक को इस ओर थोड़ा उपयोग लगाना ही अपेक्षित है; फिर तो अभ्यास दृढ़ होने पर ॐ शब्द की दिन भर में स्वयमेव ही हजारों आवृत्तियाँ' हो जाती हैं ।
सोsहं साधना
'सोsहं' को भी अजपाजप कहा जाता है । श्वास लेते समय व्यक्ति 'सो' की ध्वनि निकालता है और श्वास छोड़ते समय 'हं' की । इस प्रकार एक श्वासोच्छ्वास में अनजाने हो व्यक्ति 'सोऽहं' का जाप कर लेता है, आवृत्ति कर लेता है ।
'सोsहं' का शाब्दिक अर्थ है - मैं वही हूँ । इसी अर्थ को प्रगट करने वाले 'तदिदं', 'सेयं', 'सोऽयं' आदि शब्द भी हैं ।
इन सभी शब्दों के विषयी ज्ञान में तदंश स्मृति और इदमंश तथा अहमंश प्रत्यक्ष हैं । इस ज्ञान को दार्शनिक प्रत्यभिज्ञा कहते हैं ।
यदि इन ज्ञानों के अवस्थादि बोधक तदंश ( मैं वही ) और इदमंश (मैं यह) को छोड़ दिया जाय तो शुद्ध अभिन्न पदार्थ ही ज्ञान का विषय बनता है, कहीं-कहीं सदृश पदार्थों का भी ज्ञान होता है ।
अतः अवस्था विशेष से सम्बन्ध न रखने वाले शुद्ध चैतन्य का बोध कराने के लिए 'सोsहं' गत ' तत्ता' तथा 'अहंता' अंशों का त्याग आवश्यक
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एक दिन में इक्कीस हजार छह सौ (२१,६०० ) आवृत्तियाँ क्योंकि योगशास्त्र और धर्मशास्त्रों के अनुसार एक स्वस्थ मनुष्य २४ घण्टे में इतने ही श्वासोच्छ्वास ग्रहण करता और छोड़ता है ।
-सम्पादक
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