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( ४० ) निश्चल है । जैसे वायु के सम्पर्क से उसमें तरंगें उठने लगती हैं, इसी प्रकार मन और शरीर के संयोगरूप वायु से उसमें-आत्मा में-संकल्प-विकल्प और परिस्पन्दन -चेष्टारूप नाना प्रकार की वृत्तिरूप तरंगें उठने लगती हैं । इनमें विकल्परूप वृत्तियों का उदय मनोद्रव्यसंयोग से होता है और चेष्टारूप वृत्तियाँ शरीरसम्बन्ध से उत्पन्न होती हैं । इन विकल्प और चेष्टा रूप वृत्तियों का समूलनाश ही वृत्तिसंक्षय है । यह वत्तिसंक्षय नामक योग कैवल्य-केवल-ज्ञान-की प्राप्ति के समय और निर्वाणप्राप्ति के समय साधक को उपलब्ध होता है ।
__यद्यपि वृत्ति निरोध अन्य ध्यानादि योगों में भी होता है, परन्तु सम्पूर्ण वृत्तियों का सर्वथा निरोध तो इसी योग में संभव है । इसमें इतना विवेक है किसयोगकेवलि-अवस्था में तेरहवे गुणस्थान में तो विकल्परूप वृत्तियों का समूल नाश होता है और चौदहवें गुणस्थान में-अयोगकेवलि-दशा में-अवशेष रही हुई चेष्टारूप वृत्तियां भी समूल नष्ट हो जाती हैं। अतः विकल्परूप वृत्तियों के सर्वथा निरोध से प्राप्त होने वाला वृत्तिसंक्षययोग, आत्मा की कैवल्य-प्राप्ति का फलरूप सर्वज्ञत्व, सर्वशित्व और जीवनमुक्त दशा का बोधक है। तथा अवशिष्ट चेष्टारूप वत्तियों के समूलघात से उत्पन्न होने वाला वृत्तिसंक्षय, उसकी-आत्मा कीनिर्वाण-प्राप्तिरूप है जिसे अन्य परिभाषा में विदेहमुक्ति कहते हैं। इस प्रकार वत्तिसंक्षययोग के-१. कैवल्य-प्राप्ति, २ शैलेशीकरण' और ३ मोक्षलाभ, ये तीन मल हैं, जिनमें मानव-जीवन के आध्यात्मिक विकास की पूर्णता पूर्णरूप से निष्पन्न होती है । तथा प्रथम के चार योगों में आध्यात्मिक उत्क्रान्ति उत्तरोत्तर अधिकाधिक होती चली जाती है परन्तु उसकी पराकाष्ठा तो इस वृत्तिसंक्षय नामक पाँचवें योग में ही उपलब्ध होती है । इस प्रकार आचार्य हरिभद्रसूरि ने मोक्ष-प्रापक (मोक्ष की प्राप्ति कराने वाला) धर्मव्यापार को योग का लक्षण मानकर उसके पूर्वोक्त पाँच भेद बतलाये हैं और उसका पूर्व सेवा से आरम्भ करके वृत्तिसंक्षय में पर्यवसान किया है। सारांश कि पूर्व सेवा से अध्यात्म, अध्यात्म से भावना, भावना से ध्यान और समता, एवं ध्यान और समता से वृत्तिसंक्षय और वृत्तिसंक्षय से मोक्ष की प्राप्ति कही; .
(ख) 'विकल्पस्पन्दरूपाणां, वृत्तीनामन्यजन्मनाम् । ___अपुनर्भावतो रोधः, प्रोच्यते वृत्तिसंक्षयः' ।
(योगभेद द्वा. २५ उ. यशोविजयजी) १. योगों-मन, वचन, काया के व्यापारों-के निरोध से मेरु के समान प्राप्त होने वाली पूर्ण स्थिरता का नाम शैलेशीकरण है (शैलेशो मेरुस्तस्येव स्थिरता सम्पाद्यावस्था सा शैलेशी' औपपातिक सू० सिद्धाधिकार पृष्ठ-११३ अभयदेवसूरिः)।
२. 'मुक्खेण जोयणाओ जोगो सम्वो वि धम्मवावारो' (मोक्षण योजनाद् योगः सर्वोऽपि धर्मव्यापार:) ।
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