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________________ - नवकार महामंत्र की साधना ३७६ लेकिन चिन्तवन में ऐसा न हो कि इस पद को जो आप श्वेत रंग से लिखा हुआ देख रहे हैं, वह ओझल हो जाय, अथवा मन का एकीकरण ज्ञान केन्द्र से हट जाय । पद का साक्षात् दिखाई देना और पद के अर्थ का ध्यान दोनों साथ-साथ चलते रहें । इसका भी दृढ़ अभ्यास कर लें। चौथा सोपान-अब अरिहंत के स्वरूप का ध्यान करें। स्फटिक के समान श्वेतवर्णी, निर्मल अरिहंत की पुरुषाकृति का ध्यान ज्ञान केन्द्र में करें। उसके आकार को बढ़ाते हुए अपने सम्पूर्ण शरीर के आकार का बना लें और फिर घटाते हुए ज्ञानकेन्द्र में अति सूक्ष्म बना लें। किन्तु उस पुरुषाकृति की चमक, ज्योति बढ़ती रहनी चाहिए। इस प्रकार बार-बार करके अभ्यास इतना हृढ़ करले कि पलक बन्द करते ही अरिहंत की आकृति प्रत्यक्ष दिखाई देने लगे। श्वेत रंग, ज्ञान केन्द्र और णमो अरिहंताणं' पद से चेतना का जागरण होता है, ज्ञानशक्ति जागृत होतो है, मानसिक एवं शारीरिक स्वस्थता प्राप्त होती है तथा शुद्ध, शुभ और सात्विक भाव जागते हैं। यह ‘णमो अरिहंताणं' पद की साधना है । णमो सिद्धाणं अब ‘णमो सिद्धाणं' पद की साधना करें। इसके भी चार सोपान हैं-(१) अक्षर ध्यान (२) पद ध्यान (३) पद के अर्थ का ध्यान (४) सिद्ध स्वरूप का ध्यान । णमो सिद्धाणं' पद के ध्यान का स्थान दर्शन केन्द्र (सहस्रारमस्तिष्क-ब्रह्मरन्ध्र) है; अर्थात् चित्तवृत्ति को दर्शन केन्द्र पर एकाग्र करिए। इस पद का वर्ण बालसूर्य जैसा लाल (अरुण) है । अतः इस पद की साधना लाल रंग में की जाती है । प्रथम सोपान-इसमें भी एक-एक अक्षर की साधना की जाती है, एक-एक अक्षर को प्रत्यक्ष किया जाता है । बाल सूर्य के अरुण रंग के 'ण' 'मो' 'सि' 'द्धा' 'ण' का अलग-अलग क्रमशः ध्यान साधक करता है। द्वितीय सोपान में अरुण रंग में लिखे हुए संपूर्ण पद ‘णमो सिद्धाणं' का ध्यान किया जाता है। तीसरे सोपान में इस पद के अर्थ का चिन्तन किया जाता है, सिद्धों के गुणों पर विचार किया जाता है। जैसे—सिद्ध भगवान अविनाशी हैं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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