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________________ ३७२ जैन योग : सिद्धान्त और साधना नियोजित होती है, वह शक्तिशाली बन जाती है। परिणामस्वरूप साधक का मन और शरीर शक्तिशाली बन जाते हैं। ___ यह सारा काम साधक अपनी प्रबल साधना द्वारा संपन्न करता है। मंत्रशक्ति का रहस्य मंत्रशक्ति अर्थात् मंत्र की फल-प्रदान शक्ति का रहस्य उसके वर्ण संयोजन (स्वर और व्यंजन दोनों का समन्वित संयोजन) में निहित है। जिस प्रकार धातु और रासायनिक पदार्थों के उचित और विचारपूर्ण संयोजन से विद्य त शक्ति उत्पन्न होती है, उसी प्रकार मंत्र के अक्षरों (वर्ण और स्वरों) के संयोजन तथा साधक को उसमें नियोजित प्राणधारा के उचित और विवेकपूर्ण संयोग से मंत्र के शब्दों में भी विद्य त धारा-मानवीय विद्युत धारा का निर्माण होता है । यह विद्युत धारा जितनी ही अधिक बलवतो होगी, मंत्र की फलप्रदान शक्ति उतनी ही अधिक हो जायगी । और विद्य त धारा का बलवती होना बहुत कुछ मंत्र में प्रयुक्त वर्ण संयोजना पर निर्भर है। वर्ण समूह और साधक की ध्वनि तरंगों के सूक्ष्म मिलन से मंत्र में चमत्कारिक शक्ति उत्पन्न हो जाती है। और जब साधक के अन्तःकरण की विचार-शक्ति, भाव-शक्ति, प्राण-शक्ति, मनःशक्ति और संयम-शक्ति मंत्र में घुलमिल जाती है तो मंत्र के वर्ण अनुप्राणित (सजीव) हो जाते हैं तथा मंत्र-साधक को अभीप्सित फल की प्राप्ति होने लगती है। इन क्षणों में साधक का सूक्ष्म शरीर सब कुछ अनुभव करता है, साथ ही स्थूल शरीर में भी उस अनुभव का प्रभाव दृष्टिगोचर होने लगता है। ____मंत्रशक्ति का यह रहस्य मंत्रशास्त्रों में तो वर्णित है ही; किन्तु आज का विज्ञान भी मंत्र-शक्ति के इस आधारभूत रहस्य से परिचित हो चला है तथा अनेक वैज्ञानिकों ने इसे स्वीकार भी कर लिया है। 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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