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जैन योग : सिद्धान्त और साधना
हृदय रोग, कैंसर, मादक द्रव्यों का व्यसन, असामाजिक गतिविधियां, करता और मार-पीट की प्रवृत्तियाँ, आत्महत्याएँ, सेक्स सम्बन्धी दुर्बलताएं, तथा अन्य बहुत सी गुप्त और रहस्यमय बीमारियाँ-सभी तनाव के परिणाम हैं । यहाँ तक कि आन्तरिक व्रण (ulcers) जो शरीर के विभिन्न भागों में यथा-पेट, प्लीहा, आदि स्थानों में हो जाते हैं, उनका कारण भी तनाव ही है । थकान तो तनाव का अवश्यम्भावी परिणाम ही है।
चिकित्साशास्त्रीय दृष्टिकोण से तनाव तथा मानसिक उत्तेजना द्वारा समस्त नाड़ी मंडल गड़बड़ा जाता है तथा जिस अंग यथा मस्तिक में जहाँ तनाव अधिक होता है, शरीर की अनुकूलन ऊर्जा (adjustment energy) वहीं अधिक सक्रिय हो जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि अन्य अंगों को यह अनुकूलन ऊर्जा बहुत ही कम मिल पाती है और विभिन्न प्रकार की व्याधियाँ उठ खड़ी होती हैं।
तनाव और मानसिक उत्त जना शरीर की जीवनी शक्ति को बहुत ही तीव्र गति से नष्ट करती है। परिणामस्वरूप मनुष्य में थकान आती है। मानसिक थकान से हृदय के पेशियों वाले भाग 'मायोकाडियम' में स्नायविक संतुलन बिगाड़ जाता है, इससे जैव रासायनिक परिवर्तन होते हैं और रक्त के आवागमन में बाधा पहुँचती है। इससे दिल घबड़ाना, मस्तिष्क शूल आदि अनेक रोग हो जाते हैं।
तनाव का ही एक परिणाम अनिद्रा है। अनिद्रा और तनाव का चोली-दामन का सम्बन्ध है । मानसिक तनाव से अनिद्रा-नींद नहीं आती और नींद न आने से तनाव और बढ़ता है, मानसिक उद्विग्नता उत्पन्न हो जाती है तथा मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है। मानसिक संतुलन बिगड़ने से हिस्टीरिया आदि जैसे रोग हो जाते हैं।
मनोविज्ञान की दृष्टि से मानसिक तनावग्रस्त व्यक्ति 'न्यूरोसिस' तथा 'साइकोसिस' हो जाता है। ऐसा व्यक्ति एक तरह से जिद्दी हो जाता है, वह अपनी भूल को मानता ही नहीं, दूसरों के दोष ही देखता है, अपनी असफलताओं के लिए परिस्थितियों को दोषी ठहराता है और कभी भाग्य को कोसता है । यह स्थिति तनावजन्य निराशा की है। जब यह निराशा और बढ़ जाती है तो उसके व्यक्तित्व में झझलाहट प्रवेश कर जाती है, उसका मन-मस्तिष्क अस्थिर अथवा डाँवाडोल हो जाता है, संकल्पशक्ति का अभाव हो जाता है । वह पहले क्षण जिस वस्तु को अच्छी समझता है,
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