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प्राण-शक्ति की अद्भुत क्षमता और शारीरिक एवं मानसिक स्वस्थता
यदि अधिक हों तो मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए उत्तम है । इससे व्यक्ति में कार्यशीलता और प्रसन्नता बनी रहती है ।
यद्यपि शरीरशास्त्री अथवा चिकित्सक इस ग्रंथि के हारमोन्स का इंजैक्शन लगाकर इसे उत्त ेजित कर देते हैं, किन्तु योगी इस काम को प्राणशक्ति द्वारा भी कर लेता है । कंठ में ही विशुद्धि चक्र है, योगी प्राणायाम द्वारा प्राणवायु को कंठ तक ले जाता है, तथा वहाँ स्थिर कर देता है यानी कुम्भक कर लेता है । प्राणवायु के प्रभाव से यह ग्रंथि उत्तेजित हो जाती है, और योगी को बुढ़ापा नहीं आ पाता तथा उसमें स्फूर्ति और प्रसन्नता भी बनी रहती है ।
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तनाव (Tension)
आधुनिक सभ्यता के युग में अनेक प्रकार के मानसिक एवं शारीरिक रोगों एवं व्याधियों की वृद्धि हुई है; किन्तु उनमें सबसे भयंकर और सबसे अधिक व्यापक व्याधि है तनाव |
आज के सभ्य कहलाने वाले व्यक्ति तनाव से ग्रस्त हैं । अमीर-गरीब, बुद्धिमान मूर्ख, पढ़े-लिखे और अपढ़ सभी इस बीमारी की चपेट में है । यह सभ्य संसारव्यापी व्याधि है ।
तनाव के अनेक कारण है; जैसे भय, असुरक्षा की भावना, प्रतिकूल परिस्थितियाँ, आर्थिक व्यापारिक सामाजिक समस्याएँ आदि-आदि; किन्तु इन सभी कारणों को यदि एक शब्द में कहा जाय तो वह है - व्यक्ति में अनुकूलन (adjustment ) का अभाव। जब व्यक्ति परिस्थितियों से अनुकूलन (समझौता) नहीं कर पाता, जीवन में आने वाली समस्याओं को नहीं सुलझा पाता तो उसका मन-मस्तिष्क तनावग्रस्त हो जाता है ।
अध्यात्म की भाषा में तनाव का मूल कारण है- राग-द्वेष और रति - अरति की भावना ।
तनावग्रस्त व्यक्ति की अधिवृक्क ग्रंथि ( cortex) अधिक सक्रिय हो जाती है, रक्त से हारमोन्स अधिक स्रवित होने लगते हैं और छाती की इन्डोक्राइन ग्रन्थि (Indocrine gland or Thymus gland) सिकुड़ जाती है । तनाव की तीव्रता और मन्दता के अनुसार इन ग्रंथियों के कार्यों में भी अन्तर आ जाता है |
तनाव सिर्फ एक व्याधि ही नहीं, अनेक व्याधियों की जननी भी है ।
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