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प्राण-शक्ति को अद्मुत क्षमता और शारीरिक एवं मानसिक स्वस्थता ३५३ बिन्दु तैरते दिखायी दिये । ट्रस्ट ने रोग की जड़ पकड़ ली कि यह आन्तरिक खाज (Internal Eczema) है। बातों में उस महिला ने भी स्वीकार किया कि वह एक आफिस में कैशियर है और छोटी-मोटी रकमों की चोरियाँ करती रही है।
ट्रस्ट ने उस महिला को रोग का कारण और उपचार बताते हुए समझाया-'तुम्हारे मन में छिपी पाप भावना पवित्र स्थान का वातावरण सह नहीं पाती, वह बाहर निकलने की चेष्टा करती है, इसीलिए तुम्हारे शरीर में खुजली मचने लगती है। अब तुम ऐसा करो कि तुमने जितनी भी चोरियां की हैं, वे सब अपने मालिक (boss) के सामने स्पष्ट स्वीकार कर लो । तुम इस रोग से मुक्त हो जाओगी।'
उस महिला ने आशंका प्रगट की-'आपके सुझाव को मानने से तो मेरी नौकरी (service) ही छूट जायेगी। मेरा निर्वाह कैसे होगा? मैं आर्थिक संकट में फँस जाऊँगी।'
ट्रस्ट ने आश्वासन दिया-'ऐसा कुछ नहीं होगा। मेरा तो विश्वास है कि तुम्हारा मालिक तुम्हारी स्पष्टवादिता से प्रभावित होगा और तुम्हें अधिक विश्वसनीय समझेगा, क्षमा कर देगा।
ट्रस्ट के सुझाव के अनुसार महिला ने अपनी चोरियाँ मालिक के सामने स्पष्ट स्वीकार कर लीं। मालिक ने उसे क्षमा कर दिया। स्पष्टोक्ति से वह महिला रोगमुक्त हो गई।
इस और ऐसी अनेक घटनाओं से परामनोविज्ञान यह स्वीकार कर चुका है कि रोगों की उत्पत्ति पहले सूक्ष्म शरीर में होती है और उनकी अभिव्यक्ति होती है स्थूल शरीर में तथा उन रोगों का कारण होता हैपाप-हिसा, झठ, चोरी, व्यभिचार आदि तथा सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन, जिन्हें व्यक्ति आवेश में कर तो लेता है, किन्तु उन्हें छिपाना चाहता है, वह चाहता है कि अन्य कोई भी उसके पाप को न जाने, अन्य लोगों की निगाह में वह शरीफ बना रहे; तथा विभिन्न प्रकार के कषायजन्य आवेगसंवेग, उत्तेजना, ईर्ष्या, कुढ़न, चिन्ता, भय, दमित कामभावनाएँ, कामनाएँ, इच्छाएँ, यश-प्रसिद्धि, मान-सम्मान प्राप्ति की अभिलाषाएँ, आकांक्षाएँ भौतिक और संसारिक सुख-भोगों की इच्छा, अतृप्ति, महत्त्वाकांक्षा आदि ।
___ क्योंकि सभी मानसिक और शारीरिक रोगों का मूल कारण प्राण शरीर (कार्मण शरीर सहित) है अतः प्राण-शक्ति अथवा यौगिक क्रियाओं से इनका उपचार भी सम्भव है।
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