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________________ लेश्या ध्यान साधना और कृष्ण लेश्या का काला रंग अंजन (काजल) के समान है, इसमें चमक नहीं होती, घोर अंधकार ही होता है । कृष्णलेश्या और काला रंग काला रंग मनुष्य की दुर्भावनाओं का प्रतीक है । जिस मनुष्य के भावों में हिंसा, क्रूरता आदि दुर्भावों की तरंगें प्रवाहित होती हों, उसका आभामंडल काला होता है । ऐसा व्यक्ति कृष्णश्लेयावाला होता है । ३३६ श्याध्यान का साधक काले रंग का ध्यान करता है, उस समय वह काले रंग को गहरा न करके उसका परिमार्जन एवं संशोधन करता है । उसे हल्का बनाने का प्रयास करता है । साथ ही साधक काले रंग के ध्यान से अपने शरीर को कष्टसहिष्णु बनाता है | चूँकि काला रंग अवशोषक है, वह बाहर के भावों, दुर्गुणों को अन्दर नहीं आने देता और अन्दर के भावों को बाहर नहीं जाने देता, अतः साधक काले रंग के इस गुण का लाभ उठाकर बाह्य दुर्गुणों को अपने अन्दर प्रवेश नहीं करने देता, बाह्य प्रतिकूल परिस्थितियों से उत्त ेजित न होने की तथा उन्हें समभावपूर्वक सहन करने की क्षमता का विकास कर लेता है । ध्यान से परिमार्जित होता हुआ काला रंग बैंगनी रंग में परिवर्तित हो जाता है । इस स्थिति में यह रंग साधक के स्वाधिष्ठान चक्र को संयमित करता है । स्वाधिष्ठान चक्र के संयमन से साधक को मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है । साधक अत्यधिक भूख पर नियंत्रण स्थापित करने में सक्षम हो जाता है तथा हिंसात्मक अत्यधिक क्रूरता (fanatic violence) जो पागलपन की सीमा तक बढ़ी हुई होती है, उससे छुटकारा पा लेता है । इससे साधक को रक्त शुद्धि और अस्थियों में सुदृढ़ता आती है; परिणामस्वरूप उसे शारीरिक नीरोगता की उपलब्धि होती है । जब लेश्याध्यान साधना के बल पर साधक बैंगनी रंग को जामुनी रंग में परिवर्तित कर लेता है तो इस रंग पर ध्यान के प्रभाव से उसको मांसपेशियों की शक्ति बढ़ जाती है, परिणामस्वरूप वह शारीरिक अवयवों के दर्द (muscular pains and aches) के प्रति संज्ञाशून्य-सा हो जाता है, अर्थात् उसे दर्द की अनुभूति नहीं होती । वस्तुस्थिति यह है कि इस रंग के ध्यान से साधक अपनी चेतना को इतने ऊँचे प्रकंपनों पर पहुँचा देता है कि उस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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