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________________ ३१८ जन योग : सिद्धान्त और साधना है त्यों-त्यों अग्नि की लपटें भो तीव्र से तीव्रतर होती जाती हैं और वायु का वेग मंद होने पर अग्नि मन्द से मन्दतर होती जाती है। उसी प्रकार व्यक्ति श्वास द्वारा जितनी अधिक प्राणवायु शरीर के अन्दर ग्रहण करता है उतनी ही प्राण-शक्ति भी तीव्र होती है। प्राणवायु, प्राणशक्ति को उत्तेजित करती है। मनुष्य जिस समय प्राणवायु को ग्रहण करता है तो प्राणों को ग्रहण नहीं करता; क्योंकि प्राण तो उसके शरीर में पहले ही मौजद हैं। इसी तरह उच्छ्वास अथवा प्राणवायु को बाहर निकालना, प्राण छोड़ना नहीं है। प्राणायाम की क्रिया भी प्राणों का आयाम नहीं है, प्राण वायु का आयाम है। कुम्भक में प्राणशक्ति अथवा प्राणधारा को नहीं रोका जाता, प्राणवायु को रोका जाता है । यही बात पूरक और रेचक के बारे में भी है। ___इस तरह प्राणवायु और प्राणशक्ति एक नहीं है, इनमें परस्पर सम्बन्ध मात्र है। प्राणशक्ति, आत्मशक्ति द्वारा संचालित है। आत्मशक्ति तेजस् शरीर से जुड़ी हुई है। आत्मचेतना की धारा तैजस् शरीर से जुड़ती है तब प्राणशक्ति का उद्गम होता है । इस प्रकार प्राण का सम्बन्ध तो आत्म-शक्ति से जुड़ा हुआ है किन्तु प्राणवायु का सम्बन्ध आत्मचेतना से नहीं जुड़ता, इसका सम्बन्ध जुड़ता है प्राणशक्ति से-प्राणशक्ति की धारा और प्रवाह से । इसीलिए प्राणशक्ति की साधना से साधक को बाह्य लाभ तो होते हैं, अनेक प्रकार की ऋद्धि और लब्धि भी प्राप्त हो जाती हैं, मानसिक और शारीरिक शान्ति एवं स्वस्थता भी प्राप्त हो जाती है; किन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से कोई विशेष लाभ नहीं होता। आसन-शुद्धि प्राण-शक्ति को तीव्र करने का यह प्रथम सोपान है। सर्वप्रथम साधक आसन-शुद्धि करता है । आसनशुद्धि का अभिप्राय है आसन की स्थिरता। यों तो हठयोग तथा अन्य यौगिक ग्रंथों में ८४ प्रकार के आसन बताये गये हैं, और वैसे देखा जाय तो आसनों के अनगिनत प्रकार हैं; किन्तु योग साधना में सहकारी कुछ ही आसन हैं। उनमें से प्रमुख आसन ये हैं-(१) पर्यंकासन (२) वीरासन (३) वज्रासन (४) पद्मासन (५) भद्रासन (६) दंडासन (७) उत्कटिकासन (८) गोदोहिकासन (६) कायोत्सर्गासन ।' १ इन आसनों का वर्णन योगशास्त्र, प्रकाश ४, श्लोक १२४-१३४ में है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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