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________________ आभ्यंतर तप : आत्म-शुद्धि की सहज साधना २६१ साथ ही यह भी है कि दोष कितना भी छोटा या बड़ा हो, उसकी शुद्धि हो सकती है, कोई भी दोष ऐसा नहीं है जिसकी शुद्धि न हो सके । (२) विनय तप : अहं विसर्जन की साधना आभ्यन्तर तप का दूसरा अंग है विनय । विनय से अहंकार विगलित होकर हृदय कोमल बन जाता है । गुरुजनों एवं अपने से छोटों - बड़ों के प्रति आदर बहुमान तथा सम्मान भाव तभी प्रदर्शित किया जा सकता है जब मन में समर्पण एवं भक्ति का अंकुर प्रस्फुटित हुआ हो । जैन आगमों में विनय के सात भेद' बताये गये हैं । (१) ज्ञान विनय, (२) दर्शन विनय, (३) चारित्र विनय, (३) मनोविनय, (५) वचन विनय, (६) काय विनय और (७) लोकोपचार विनय । (१) ज्ञानविनय - तपोयोगी साधक ज्ञान और ज्ञानी दोनों की विनय करता है । ज्ञानविनय से उसका ज्ञान निर्मल होता है और ज्ञान प्राप्ति की ओर उसका आकर्षण बढ़ता है । इसीलिए ज्ञानविनय के अन्तर्गत वह मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधि - ज्ञानी, मनः पर्यवज्ञानी और केवलज्ञानी की विनय करता है । १ (क) औपपातिक सूत्र, तपोऽधिकार, सूत्र ३० (ख) भगवती २५ / ७ (ग) स्थानांग सूत्र ७ / ५८५ (घ) तत्वार्थ सूत्र में विनय के चार प्रकार ही बताये हैंज्ञानदर्शनचारित्रोपचाराः । - तत्त्वार्थ सूत्र ९ / २३ (च) विनय के विशेषावश्यकभाष्य में ५ प्रकार बताये हैं— (१) लोकोपचार विनय- माता-पिता, अध्यापक आदि गुरुजनों का विनय, (२) अर्थ - विनय - धन के लिए सेठ आदि धनवानों, राजा, नेता, आदि का विनय, (३) कामविनय - काम-भोगों की इच्छापूर्ति के लिए स्त्री आदि का विनय, (४) भयविनय - प्राणरक्षा अथवा अपराध हो जाने पर उसका दण्ड न भोगना पड़े, इस उद्देश्य से राज्याधिकारियों तथा समाज प्रमुखों एवं असामाजिक तत्वों का विनय । (५) मोक्ष विनय - आत्मकल्याण हेतु सद्गुरुओं की विनय करना । इनमें से प्रथम विनय लोक व्यवहार तथा शिष्टाचार है, वह शुभ कर्मों का हेतु है । दूसरी, तीसरी, चौथी विनय, विनय न होकर चापलूसी है, अशुभ कर्मबन्ध का हेतु है। पांचवीं विनय ही वास्तविक विनय है, वही तप है। क्योंकि कर्मनिर्जरा का कारण है । -संपादक For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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