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________________ बाह्यत: बाह्य आवश्य-शुद्धि साधना २५.५ व्यक्ति पूर्ण स्वस्थ हो और उसकी मनोभावनाओं का आवेग तीव्र हो तो उसकी मानवीय विद्युत तरंगों का विकिरण २ व ३ ( ढाई-तीन फीट) तक हो सकता है और उतनी ही अधिक मात्रा में वातावरण भी प्रभावित होता है । चूँकि स्त्री में स्त्री हारमोन्स (Female harmones) निःसृत होते हैं और वे पुरुष हारमोन्स ( Male harmones) को अधिक मात्रा में आकर्षित / प्रभावित करते हैं, इसलिए साधक को स्त्री - संपृक्त स्थान में रहने का आगमों में निषेध किया गया है । इतना विशेष है कि युवती स्त्री में स्त्री हारमोन्स अधिक मात्रा में बनते हैं और वृद्धा स्त्रो में इनकी मात्रा कम हो जाती है, इसलिए ध्यानशतक तथा आगमों की (उत्तराध्ययन सूत्र आदि की टीका ) टीका में स्त्री का अर्थ प्रायः युवती किया गया है । फिर भी स्त्री शब्द में नारी मात्र का समावेश है । नपुंसक की काम वासना का दृष्टान्त तो आगमों में नगर - दाह से दिया गया है, उसकी काम वासना भी अति तीव्र होती है, उसकी विचार तरंगें प्रायः वासनाप्रधान रहती है अतः उससे संपृक्त स्थान में तो तपोयोगी को बिल्कुल भी नहीं बैठना चाहिए। पशुओं में राजसिक और तामसिक तरंगें होती हैं, सात्विक तरंगें नहीं होतीं, इसलिए तपोयोगी का स्थान उनसे भी रहित होना चाहिए। आसन आदि के प्रयोग के बारे में जो साधु के लिए यह विधान है कि 'जिस आसन पर स्त्री बैठी हो, विवशता होने पर भी साधु एक मुहूर्त के बाद ही उसका उपयोग करे' उसका कारण भी यही है कि स्त्री के विद्युत् शरीर से जो तरंगें निकलकर उस आसन के परमाणुओं को प्रकम्पित करती हैं, उसके आसन छोड़ने के एक मुहूर्त में वे परमाणु शान्त हो जाते हैं, उन पर हुआ विद्युत् तरंगों का प्रभाव समाप्त हो जाता है । कुशील व्यक्ति की दुर्भावनाओं से भी वातावरण दूषित और मलिन हो जाता है, इसीलिए साधक को उससे रहित स्थान पर रहना चाहिए । यद्यपि गृहत्यागी श्रमण तपोयोगी तो जीवन भर के लिए विविक्त शयनासन सेवन करता है, किन्तु जो गृहस्थ तपोयोगी साधक प्रतिसंलीनता तप की आराधना करता है, वह भी अपने आराधन और ध्यान काल में विविक्त शयनासन सेवन करे, यह अपेक्षित है । १ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ५, पृ० २५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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