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________________ २४६ जैन योग : मितान्त र साधना ये दोनों प्रकार के कष्ट सामान्य मनुष्य को तो कष्टकर और दुःसह प्रतीत होते हैं किन्तु तपोयोगो साधक अपने शरीर को इतना साध लेता है कि ये कष्ट उसे पीड़ित नहीं करते । उसकी क्षमता इतनी विकसित हो जाती है कि वह इन कष्टों से प्रभावित भी नहीं होता, न उसको शारीरिक और मानसिक तनाव ही आता है और न पीड़ा की अनुभूति ही होती है । लेकिन विचारणीय तथ्य यह है कि क्या स्थूल (औदारिक) शरीर को साधने से ही तपोयोगी साधक की क्षमता विकसित हो जाती है कि उसे कष्टों की, पीड़ा की अनुभूति ही न हो; क्योंकि अनुभूति तो स्थूल शरीर को होती ही नहीं, यह तो माध्यम है; अनुभूति तो तेजस् और प्राणमय शरीर के माध्यम से आत्मा ही करता है। अतः यह मानना अधिक उचित होगा कि तपोयोगी साधक स्थूल शरीर के साथ-साथ तैजस शरीर को भी साधता है। और तैजस अथवा प्राणमय शरीर को साधने का माध्यम है प्राण । वह प्राणायाम की साधना द्वारा ही तैजस शरीर को साधता है, उसे कष्टसहिष्ण बनाता है। जिससे कि वह (तैजस शरीर) कष्ट की अनुभूतियों से प्रभावित न हो और उन कष्टप्रद अनुभूतियों को आत्मा तक न पहुँचावे । इसीलिए तपोयोगी साधक प्राणायाम की साधना करता है। __ आचार्य हेमचन्द्र' ने प्राणायाम को मनोविजय का साधन और आचार्य शुभचन्द्र ने इसे ध्यान की सिद्धि तथा मन को एकाग्र करने के लिए आवश्यक बताया है तथा इसकी फलश्रु ति में कहा गया है यह शरीर (स्थूल और सूक्ष्म दोनों शरीर) की शुद्धि करता है। प्राण श्वास-प्रश्वास की गति, उसका आयाम-विच्छेद-अवरोध करना प्राणायाम है। प्राण, अपान, उदान, समान और व्यान-इन पांच प्रकार की वायुओं पर विजय प्राप्त करना, यह प्राणायाम है। प्राणायाम के रेचक, पूरक और कुम्भक ये तीन भेद हैं-नाभि प्रदेश में स्थित वायु को नासिका. रन्ध्र से बाहर निकालना रेचक; बाहर के वायु को बलपूर्वक नासारन्ध्र से १ योगशास्त्र ५/१ २ ज्ञानार्णव २६/१-२ ३ योगशास्त्र ५/३२-३५ ४ (क) तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः । (ख) योगशास्त्र ५/४ ___-पातंजल योगसूत्र २/४६ ५ योगशास्त्र ५/१३-४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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