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________________ बाह्य तप: बाह्य आवरण-शुद्धि साधना | २३७ आयुर्वेद में उपवास को लंघन कहा गया है, और लंघन को परमौषधि - 'लंघनं परमौषधम्' बताया गया है । अनशन तप से शरीर की शुद्धि होती है, रक्त संचार ठीक होता है और पाचन क्रिया तेज होती है । परिणामस्वरूप उदर सम्बन्धी रोगों का उपशमन होता है । गैस, अग्निमन्दता, आदि रोग नहीं हो पाते । उपवास से पाचन तन्त्र को अवकाश मिलता है, इस अवकाश में वह पिछले अपचे हुए अन्न को पचा लेता है, अतः कब्ज नहीं हो पाता है और पेट में जमा पुराना मल भी साफ हो जाता है । प्राकृतिक चिकित्सा का तो मूल आधार ही उपवास है । शरीर और विशेष रूप से उदर का आन्तरिक भाग रबड़ जैसा लचीला है । भोजन से उदर की आंतें आदि फैल जाती हैं और उपवास से वे अपनी स्वाभाविक दशा में आ जाती हैं । उपवास से फोड़ा-फुन्सी आदि जल्दी ठीक होते हैं; क्योंकि उपवास काल में शरीर दूषित पदार्थों को बाहर निकाल देता है । उपवास द्वारा रक्त के लाल कण (Red Corpsules) बढ़ जाते हैं, अतः रक्ताल्पता नहीं हो पाती । शरीर की अम्लता (acidity) को समाप्त करने में भी उपवास लाभप्रद होता है । अतः डाक्टर फेलिक्स, एल. आसवाल्ड के शब्दों में- शरीर की आन्तरिक सफाई का सर्वोत्तम तरीका उपवास है । शारीरिक लाभों के अतिरिक्त उपवास से मानसिक लाभ भी बहुत होते हैं । सिर-दर्द, दिमाग का भारीपन आदि मिट जाते हैं । मस्तिष्क अधिक सक्रिय होता है और उसकी विचार-शक्ति बढ़ जाती है, नई-नई स्फुरणाएँ उत्पन्न होती हैं । इन सब बातों का परिणाम यह होता है कि तपोयोगी साधक, अनशन तप के फलस्वरूप मानसिक और शारीरिक रूप से योग साधना के लिए अधिक सक्षम हो जाता है, वह आगे के तपों की साधना सरलता से कर सकता है; क्योंकि अनशन तप के आचरण से उसमें 'क्षुधाविजय' भूख को सहने की अद्भुत क्षमता आ जाती है । भूख को जीतने वाला सब को ही जीत सकता है और उससे तपः साधना की आधारभूमि तैयार हो जाती है । अतः अनशन तप तपोयोग की आधार भूमि है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002077
Book TitleJain Yog Siddhanta aur Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1983
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size22 MB
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